कोरोना वाइरस या वाइरस हम.?

     मैं जैसे ही दरवाजा खोलने दरवाजे के हैंडिल को छूने गया, सहसा अपनी नजरों को ज़ूम करके देखा तो COVID-19 अर्थात कोरोना वाइरस वहां हैंडिल पर बैठा मानो मेरा ही इंतज़ार कर रहा था। लेकिन मैं ठहरा इस पृथ्वी पर स्वघोषित सबसे बुद्धिजीवी प्राणी। मैं कैसे इस वाइरस के जाल में फंस सकता था। तुरन्त ही जेब से सेनेटाइजर की बोतल निकाली और जैसे ही हेंडल पर स्प्रे करने ही वाला था, तभी तक क्या देखता हूँ यकायक कोरोना का वाइरस मेरे सामने अपने असंख्य हाथों को जोड़कर जैसे अपने प्राणों की भीख मांग रहा हो। पहले तो मेरा मन पसीजा, लेकिन तुरंत मैने उसकी तरफ सेनेटाइजर की बोतल बढ़ाकर कहा- "क्यों बे.! अब आई न अक्कल ठिकाने तेरी। बहुत उत्पात मचाया हुआ है पूरे संसार में। अबे मानवभक्षी.! हमने तेरा क्या बिगाड़ा था। तूने आज पूरे संसार में जो कोहराम मचाया हुआ है, तुझे इस पर जरा सा भी पछतावा नहीं। तुझे लाज न आई मानव जाति पर ये शर्पदंश मारते हुए।"


     पहले तो COVID-19 ने साँस भरी फिर रुंधे हुए स्वर में मुझसे बोला- "मेरा जन्म आप लोगों की ही अति महत्वकांक्षा का नतीजा है। मुझे पैदा करने वाला कौन है.? मुझे एक जगह से दूसरी जगह फैलाने वाला कौन है.? आप खुद को इस धरती की सबसे बुद्धिजीवी प्रजाति कहते हो न। ईश्वर ने तुम्हें वो सब दिया जो एक उत्कृष्ट जाति होने के नाते चाहिए होता है। लेकिन इसके विपरीत आप लोगों ने क्या किया, भोले-भाले जीव-जंतुओं को मारा और उनका भक्षण किया। पेड़-पौधों को अनायास काटकर प्रकृति का सन्तुलन बिगाड़ा। धरती को तपाकर हिमखंडों को पिघलने पर मज़बूर किया। बेमौसम बरसात करवाई। जंगलों को बिना सोचे समझे आग के हवाले कर असंख्य जीव जंतुओं को काल का निवाला बनाया। समुद्र का पारितंत्र बिगाड़ा। आकाश को दूषित किया। आखिर क्या-क्या गलत नहीं किया तुम लोगों ने। लेकिन आज जब ये सब लौटकर तुम्हारे सामने विकराल रूप धारण किये हुए है तो मुझे इलज़ाम दिए जा रहे हो। याद रख मानव लकड़ी आगे से जलकर पीछे ही आती है। ये सब तेरे कुकर्मों का दुष्परिणाम है।"
तुम खुद जानते हो जब-जब धरती पर धर्म की हानि होती है तो मुझे इस धरती पर अवतार लेना पड़ता है। मैं कभी भगवान बनकर आता हूँ तो कभी अंजान बनकर। तुमने तो प्रकृति का पूरा संतुलन बिगाड़ कर रखा हुआ था। मुझे इलज़ाम देता है। मैने तो इस प्रकृति को फिर से मानवीय चुंगल से आज़ाद किया है। देख बाहर चारों तरफ अपनी निगाहें फैलाकर देख। आज वायु बिलकुल शुद्ध है। तूने जो हवाओं में जहर मिलाया हुआ था। मेरे डर से लॉकडाउन में सब गायब हो चुका है। जो जल में गंदगी मचाई हुई थी देख आज सभी जल स्रोतों में पानी पीने योग्य हो चुका है। आज धरती सुरक्षित है, आकाश साफ़ है और जल शुद्ध है। अब तू ही बता इस धरती पर विषाक्त मैं हूँ या तुम हो.? इस धरती पर वाइरस मैं हूँ या तुम हो.??  जबाब दो... अब गले को लकवा मार गया या तुम्हें साँफ सूंघ गया।


     आओ बड़ों मेरी तरफ, मुझे ख़त्म कर दो। मैं अस्तित्वहीन हूँ लेकिन तबतक जबतक कि प्रकृति से छेड़छाड़ न हो। लेकिन ये याद रखना अगर अभी नहीं सुधरे तो मैं वापिस आऊँगा। प्रकृति की रक्षा के लिए, पारितंत्र की मजबूती के लिए, धर्म की रक्षा के लिए।
     ये कहकर Covid-19 ने अपनी आँखें खुद ही मूँद ली। मानो उसकी यात्रा अब पूरी हो चुकी हो। उसका आने का उद्देश्य अब समाप्त हो चूका हो।
     मैं अपने हाथ में सेनेटाइजर की बोतल लिए स्तब्ध, लज्जित था। मानो काटो तू खून नहीं...।

-प्रभात रावतⒸ  🌞
*(ये लेखक के अपने व्यक्तिगत एवं स्वतंत्र विचार हैं..!!)



Post a Comment

16 Comments

  1. वाह ! बहुत ही सुंदर लेखनी.....

    ReplyDelete
  2. 🙏🙏🙏Bahut utkrisht lekh likha h aapne guru Ji

    ReplyDelete
  3. क्या बात है रावत जी आपने सब लोगों को एहसास दिला दिया है हकीकत का।

    ReplyDelete
  4. “लालच भरे हुए रास्ते अक्सर फिसलन भरे होते है, जो लोगो का अस्तित्व तक मिटा देते है।
    The best editorial by great person

    ReplyDelete
  5. लेखन के तो आप पहले से ही उतम थे
    बहुत सुन्दर लेख.

    ReplyDelete
  6. Tribhuwan Singh RanaApril 22, 2020 at 6:10 PM

    Wah bhai sahab. Adorable thoughpross and after so long time I found the deep sore of Something like The Great Deven Mewari fragrance in the form of quite empressive amalgamation. Hope you will move with this ecstatic thoughpross and kepp it up long-lasting, you will find us always with you brother.

    ReplyDelete