एक फूल दो माली

     यह कहानी एक ऐसे प्रतिभा संपन्न व्यक्ति की है जो गरीबी और सुविधाओं के अभाव में सफलता की उन ऊंचाइयों को न छू सका, जहाँ के लिए वो बना हुआ था। पश्चिम बंगाल के बीरभूम जनपद का एक छोटा सा गांव नाम है- नागुरी। वहां एक टुटा हुआ मकान। मकान के साथ रहते हैं उसमें कुछ टूटे हुए सपने। मकान में रहने वाले सभी सामान्य एवं ज़मीन से जुड़े हुए चेहरे। उन चेहरों में है लाचारी और बेबसी उस गरीबी की जो एक प्रतिभा को आगे बढ़ने से निरंतर रोकती है। इन्हीं चेहरों में से एक चेहरा ऐसे व्यक्ति का है जो आज तक गुमनामी की राहों में कहीं खो सा गया था। शायद वक्त ने उसे जैसे भुला दिया हो।

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फोटो: social media
     बात सन् 1972 ई0 की है जब इस व्यक्ति के जहन में एक ख्याल आया। उन्हें अक्सर गीतों को गाने का शौक था। इसी शौक के चलते इस गीतकार ने अपनी कलम उठाई और एक गीत लिख डाला। उस वक्त उनके मस्तिष्क में एक पतिता को लेकर यह गीत लिखने का ख्याल आया। एक ऐसी औरत जिसका पति उसे छोड़कर कहीं चला गया है। लेकिन उस औरत के पेट में उनके प्यार की निशानी अर्थात बच्चा पल रहा है। ज़माने के ताने और अपनी व्यक्तिगत मजबूरियों के चलते यह समाज उस स्त्री को एक कोठे पर धकेल लेता है और वह मज़बूरी में एक वैश्या बन जाती है। इसलिए शायद उस स्त्री के लिए पतिता शब्द प्रयोग किया गया है। लेकिन कुछ समय बाद वह स्त्री एक खूबसूरत बेटी को जन्म देती है। वह नहीं चाहती की उसकी बेटी पर उसकी मनहूसियत की कोई छाया भी पड़े। बेटी का पिता कौन है, यह उस माँ के अलावा कोई नहीं जानता है। अब धीरे-धीरे बेटी बड़ी हो चुकी है। वह स्त्री अपनी बेटी की चोटी बना रही है। बालों को संवारते हुए अपनी नन्ही सी बेटी को देखकर वह मोहित हो जाती है। और अपनी बेटी से कहती है- "तुम एक बड़े बाप की बेटी हो अर्थात तुम्हारा ताल्लुक एक बड़े घराने से है। तुम्हारे कितने लंबे-लंबे बाल हैं। मैं तुम्हारे सिर पर लाल गेंदे का फूल लगाउंगी।" क्योंकि इस कहानी के केंद्र बिंदु में जो गीतकार हैं वे एक बंगाली पृष्ठ भूमि के व्यक्ति हैं। इसलिए उन्होंने इस संवाद को बांग्ला भाषा में लिखा। बांग्ला भाषा में इस गीत की प्रथम दो पंक्तियाँ कुछ इस प्रकार लिखी गयी थी-
बोरो लोकेर बिटी लो, लोम्बा-लोम्बा चूल।
आमोन माथै बेंधे देवो लाल गेंदा फूल।।

     शायद अब आप सभी समझ चुके होंगे की आज हमारी इस कहानी के केंद्र बिंदु में जो व्यक्ति हैं वे कौन हैं। जी हाँ ये प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति हैं, बांग्ला भाषा में इस गीत के रचनाकार एवं संगीतज्ञ-  "श्री रतन कहार जी"
मूल गीत की आगे की कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार हैं-
देखे छिलाम शाराने... ओरे शाराने।
आमार शोंगे देखा होबे, बाबू'र बागाने।।
लाल धूलो'र शाराने... ओरे शाराने।
भालोबाशा दारीन छिलो, माथा'र शीताने।।
(हिंदी में इन पंक्तियों का अर्थ निकलता है- मैंने सपने में देखा की मैं अपने प्रेमी से मिलने बाग़ में गयी हूँ। लाल मिट्टी वाले इस बाग़ में मेरा प्रेमी मेरे सिर के पास खड़ा है। शायद ये वही प्रेम सम्बन्ध है जिसके बाद उसके गर्भ में बच्ची आती है।)
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फोटो- social media

     इंटरनेट पर खोजबीन करने पर पता लगा कि रतन कहार जी कहते हैं, "मैंने सन् 1972 में यह गीत लिखा था। मैं आकाशवाणी कोलकाता में भी गाने गा चुका हूँ। वहां से मुझे कोई दो-तारा प्लेयर एक गुप्त स्थान पर ले गए। वे एक फार्म लेकर आये, जिसमें मेरे 4 गाने लिखे हुए थे। मुझसे पूछा गया की क्या ये गीत मैंने लिखे हैं। मैने कहा हाँ.! फिर बोले कि इस फार्म पर दस्तख़त कर लो। मैने मना कर लिया तो मुझसे कहा कि नहीं करोगे तो बहुत खतरे में पड़ जाओगे। और फिर मुझसे उस फॉर्म पर जबरन दस्तख़त करवाये गए।"

     सन् 1976 ई0 में यह गीत गायिका "स्वप्ना चक्रवर्ती" की आवाज में रिकॉर्ड पर आया। इसे उस वक्त बहुत पसंद किया गया। लेकिन दुर्भाग्य देखिये लिरिसिस्ट में इसमें रतन कहार जी का नाम नहीं था अपितु इसे बांग्ला फोक कहा गया। आज भी सारेगामा के ऑफिसियल चैनल पर गीतकार को कोई भी दर्जा नहीं दिया गया है। समय बदलता गया और समय के साथ ही इस गीत के बहुत से वर्जन निकलते गए। लेकिन उन सभी में भी रतन कहार जी का नाम लिरिसिस्ट में नहीं था।

     इन सबके बीच इस वर्ष यह गीत तब चर्चा का विषय बन गया जब 26 मार्च 2020 को रैपर बादशाह (आदित्य प्रतीक सिंह सिसोदिया) के द्वारा अपना एक गीत "गेंदा फूल" लांच किया गया। इस गीत को बादशाह और पायल देव ने गाया था। इसमें मुख्य अदाकारा जैकलीन फर्नांडिस ने अभिनय किया तथा इस गीत को स्नेहा शेट्टी कोहली द्वारा डायरेक्ट किया गया। हर बार की तरह इस बार भी बोरो लोकेर बांग्ला गीत की दो पंक्तियाँ इस हिंदी गाने में प्रयोग की गयी। यही इस गाने की सफलता का कारण बनी तथा इंटरनेट पर इस गाने को खूब पसंद किया जाने लगा। गाने की रिलीज़ के प्रथम सप्ताह में ही गाने को 140 मिलियन व्यूज मिल गए। आलम यह रहा की विश्व में कोने-कोने तक यह गाना सभी के होठों पर पहुँच गया।

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फोटो: गेंदा फूल गीत-social media

     लेकिन इस बार यह गीत विवादों का कारण बन गया। पहला कारण यह कि, यह गीत बांग्ला भाषा का एक लोकगीत रहा है। मूल गीत में जहाँ गेंदे के फूल को ममता और वात्सल्य का प्रतीक बनाकर गीतकार ने शब्दों में पिरोया था वहीं बादशाह के इस गीत में गेंदे के फूल को फूहड़ता के साथ प्रदर्शित किया गया। इसमें बादशाह की भी कोई गलती हमें नज़र नहीं आती है क्योंकि वे एक कलाकार हैं। दर्शकों को ध्यान में रखकर ही हर कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करता है। आज जो ज़माने की मांग है वही मशाला उन्होंने अपने गीत में डाला हुआ है। दूसरा कारण, यह कि इस बार भी लिरिसिस्ट में रतन कहार जी के नाम का कहीं कोई उल्लेख नहीं है। इसलिए इंटरनेट पर आने के तुरंत बाद ही जहाँ इस गीत को बहुत ज्यादा सराहा गया, वहीं बादशाह को काफी विरोध भी झेलना पड़ा।


     जब रतन कहार जी तक यह गीत पहुँचा और उन्हें पूछा गया की आपका लिखा हुआ गीत आज सभी की जुबाँ पर है। आपको इस बात का बुरा नहीं लगता की आपको इसका क्रेडिट नहीं दिया जाता है। तो वे कहते हैं- "बुरा लगता तो कबका गाना छोड़ देता। हाँ लेकिन पत्नी और बच्चों के लिए बुरा लगता है। वे कहते हैं कि जो हक़ आपका था वह आपको मिलना चाहिए था। सम्मान तो बहुत मिला लेकिन इसे एक हफ्ते बाद सभी भूल जाते हैं। फर्क तो पैसे का पड़ता है। हम सभी पैसे से ही जाने जाते हैं, और तभी हमसे सभी खुश भी होते हैं।"


आगे कहते हैं, इस गाने के लिरिक्स से लेकर संगीत तक सब कुछ मेरा है। लेकिन कुछ लोग बेईमानी के द्वारा मेरे गीत को खुद का गीत बताकर गाते हैं। इसमें मैं क्या कर सकता हूँ। मैं बहुत गरीब हूँ, झोपडी में रहता हूँ। मैं मिट्टी से जुड़े गीत लिखता हूँ। मैं इतना धनी नहीं कि किसी को कोर्ट में घसीट सकूँ।
     जब सोशल मिडिया द्वारा यह बात बादशाह तक पहुँची तो इस पर पहले तो बादशाह ने चुप्पी साधी रखी लेकिन फिर फेसबुक पर अपनी प्रतिक्रिया ज़ाहिर की। बादशाह ने कहा- "हमारी टीम ने जब 26 मार्च को गेंदा फूल गीत लांच किया था। जो बांग्ला लोकगीत के लिरिक्स के साथ एक हिंदी गाना था। कुछ समय बाद मुझे पता चला की जो बंगाली लिरिक्स हैं, वो ओरिजनली बोरो लोकेर बीटी लो गीत से लिए गए हैं। जिसे गीतकार रतन कहार जी ने लिखा है। हमने गाने को रिलीज़ करने से पहले पर्याप्त मेहनत की थी। लेकिन गाने के पुराने वर्जन में या कॉपीराइट में लिरिसिस्ट के तौर पर रतन कहार जी का कहीं कोई ज़िक्र नहीं था। सारी जानकारियां बता रही थी की यह एक बंगाली लोकगीत है। फिर भी मैं रतन कहार जी तक पहुँचने की पूरी कोशिस कर रहा हूँ। ताकि स्थिति से न्यायपूर्ण तरीके से निपटा जा सके। लेकिन लॉक डाउन होने के कारण फिलहाल ये संभव नहीं हो पा रहा है। मैं आप सभी के माध्यम से रतन कहार जी तक अपना ये मेसेज पहुँचाना चाहता हूँ। मैं उनकी हर प्रकार से सहायता करना चाहता हूँ। और मैं हर संभव कोशिस करूँगा की उनके लिए कुछ कर पाऊँ।"
     इसके बाद बादशाह ने रतन कहार जी तक 5 लाख रूपये की मदद भी पहुँचाई। मदद पाकर रतन कहार जी ने इसके ऐवज में बादशाह तक अपना मेसेज पहुँचाया और उन्हें धन्यवाद के साथ आगामी जीवन में सफलता के लिए अपना आशीर्वाद भी दिया।


     यहाँ हम उपर्युक्त घटित इस प्रकार की किसी भी घटना का सही होने का शत्-प्रतिशत दावा नहीं करते क्योंकि हमें भी ये सारी जानकारियां तमाम सोशल मिडिया स्रोतों तथा यू-ट्यूब के माध्यम से मिली है।
     कुल मिलाकर विवाद अच्छे से सुलझ गया। बादशाह ने आखिर साबित कर दिया की वो सिर्फ नाम के ही बादशाह नहीं हैं वरन दिल से भी बादशाह है। दर्शकों को अपनी पसंद के मुताबिक एक अच्छा गीत सुनने को मिला। लेकिन ये भी सत्य है कि इन सबके बीच रतन कहार जी जिन्हें पहले बहुत कम लोग जानते थे, वे आज एक सेलिब्रेटी बन गए हैं। उम्मीद है उन्हें अपने मेहनताना के साथ ही उतनी प्रसिद्धि भी मिलेगी जिसके वे हकदार हैं।

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फोटो: social media

     यहाँ इस विषय पर यह लेख लिखने का हमारा उद्देश्य किसी एक पक्ष को ऊपर या नीचा दिखाने से नहीं है। वेसे तो इस घटना को घटित हुए अब तक़रीबन 2 माह बीत चुके हैं। आज भी बहुत से व्यक्ति ऐसे हैं जिनके होठों पर यह "गेंदा फूल" गीत रहता तो अवश्य होगा, परंतु उन्हें असल में ये नहीं पता इसके वास्तविक गीतकार कौन हैं। देखा जाये तो इस गेंदे के फूल के दो माली हैं। एक वो है जिसने इसको सींचा है। इसका पालन-पोषण किया है अर्थात जो इसका जन्म-दाता है। तथा दूसरा वो है जिसने इस गेंदे के फूल की खुशबू से इस दुनियाँ को रू-ब-रू करवाया है। दोनों के अपने-अपने कार्य हैं और इस गाने की सफलता के लिए दोनों कलाकारों का बराबर सहयोग है। लेकिन हमारा प्रयास मात्र यह है कि अगर वास्तव में इस संसार में कोई ऐसी प्रतिभा है, जो अभी भी गुमनामी का जीवन जीने को मजबूर है। तो उसे समाज के सामने लाना हमारा कर्तव्य है। वेसे भी भारत तो मनीषियों की भूमि रहा है। बंगाल की मिट्टी तो वेसे भी वह मिट्टी है, जहाँ रवीन्द्रनाथ टैगौर जैसे देशभक्त और साहित्यकारों ने जन्म लिया है। फिर ऐसे में किसी महान प्रतिभा का गुमनामी में यूँ दफ़न हो जाना ठीक नहीं लगता। इसमें बहुत कुछ जिम्मेदारियां हमारी सरकार पर भी हैं कि वे इन गुमनाम हस्तियों का सम्मान कर उन्हें सामाजिक तथा आर्थिक मदद प्रदान करे। किसी भी कलाकार का सम्मान उसका व्यक्तिगत सम्मान नहीं होता बल्कि उससे जुड़े हुए पूरे जन-समुदाय का सम्मान होता है, पूरे राष्ट्र का सम्मान होता है। उम्मीद है आने वाली कई शताब्दियों तक जब कभी इस बांग्ला लोकगीत की चर्चा होगी तो "श्री रतन कहार" जी का नाम बड़े सम्मान के साथ याद किया जायेगा.....!

-प्रभात रावतⒸ  🌞
*(ये लेखक के अपने व्यक्तिगत एवं स्वतंत्र विचार हैं..!!)

**आंकड़े/स्त्रोत:- इलेक्ट्रॉनिक मिडिया, सोशल मीडिया स्रोतों तथा यू-ट्यूब आदि द्वारा प्राप्त।

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10 Comments

  1. Dats awesome .. luv d song very much .. u write it so perfectly .. my happiness is..beyond d words ..d way u describe d whole scenario .. is just .. wooowww .. 😍😍💟👌👌

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  2. बहुत सुंदर भैया

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  3. U have lots of knowledge 😉👌
    Realistic n great

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  4. The story is very good and heart touching but the way it is represented it is more beautiful your writing skill is fantastic brother

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  5. Nice writing style...even thought process is excellent....so Prabhat ji keep it up...... awesome....

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