इस वर्ष 2020 का 'विश्व पृथ्वी दिवस' अन्य वर्षों की तुलना में ज़रा भिन्न रहा। कारण यह कि वैश्विक महामारी कोरोना के चलते जहाँ अधिकांश कार्य ठप पड़ा हुआ था वहीं पूर्णबंधी होने की वजह से लगभग सभी लोग अपने-अपने घरों में बंद पड़े रहे। इस बार प्रकृति ने खुद मनुष्य की अनुपस्थिति में अच्छे से पृथ्वी दिवस मनाया।
गौरतलब है कि इस वर्ष पिछले वर्षों की भांति कोई बड़ा या भव्य आयोजन सामाजिक दूरी बनाये रखने के मध्येनज़र नहीं हो पाया। इस कारण विश्व पृथ्वी दिवस विशेष रहने के मुख्य 2 कारण रहे। पहला यह कि- यह वर्ष इसकी स्थापना का 50वां वर्ष था, तो दूसरा यह कि लोगों ने केवल डिजिटल माध्यम से इस वर्ष पृथ्वी दिवस मनाया। इसके कारण जहाँ इसके कुछ फायदे मसलन प्रकृति से मानव का प्रत्यक्ष हस्तेक्षप कम हुआ, वहीं कुछ नुक्सान भी हुए जैसे- वृक्षारोपण, जन-जागरूकता, साफ़-सफाई आदि कार्यक्रमों को स्थगित करना पड़ा।
विश्व पृथ्वी दिवस का इतिहास:
पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीव-जंतुओं एवं पेड़-पौधों की रक्षा करने के उद्देश्य तथा पर्यावरण व पारिस्थितिकी तंत्र की मजबूती के लिए सन् 1970 ई0 में पहला 'विश्व पृथ्वी दिवस' मनाया गया था। दुनियाभर में पर्यावरण संरक्षण को समर्थन देने के लिए हर साल 22 अप्रैल को 'पृथ्वी दिवस' (Earth Day) मनाया जाता है। बता दें कि पृथ्वी दिवस की शुरुआत अमेरिकी सीनेटर 'गेलोर्ड नेल्सन' (Gaylord Nelson) ने पर्यावरण की शिक्षा के रूप में की थी। पहले इस दिन को मनाने की शुरुआत सन् 1970 में हुई, जिसके बाद आज इस दिन को लगभग 195 से ज्यादा देश मनाते हैं। जलवायु परिवर्तन मानवता के भविष्य और जीवन-समर्थन प्रणालियों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है, जो हमारी दुनिया को रहने योग्य बनाता है।
साल 1969 में कैलिफोर्निया के सांता बारबरा में तेल रिसाव के कारण भारी बर्बादी हुई थी, जिससे 'गेलोर्ड नेल्सन' बहुत आहत हुए और पर्यावरण संरक्षण को लेकर कुछ करने का फैसला किया। 22 जनवरी को समुद्र में तीन मिलियन गैलेन तेल रिसाव हुआ था, जिससे 10,000सी-बर्ड, डाल्फिन, सील और सी-लायंस मारे गए थे। इसके बाद नेल्सन के आह्वाहन पर 22 अप्रैल 1970 को लगभग दो करोड़ अमेरिकी लोगों ने पृथ्वी दिवस के पहले आयोजन में भाग लिया था। नेल्सन ने ऐसी तारीख को चुना जो इस दिवस में लोगों की भागीदारी को अधिकतम कर सके। उन्हें इसके लिए 19 से 25 अप्रैल तक का सप्ताह सबसे अच्छा लगा।
'पृथ्वी दिवस' या 'अर्थ डे' शब्द को लोगों के बीच सबसे पहले लाने वाले 'जुलियन कोनिग' (Julian Koenig) थे। सन् 1969 में उन्होंने सबसे पहले इस शब्द से लोगों को अवगत करवाया। पर्यावरण संरक्षण से जुड़े इस आन्दोलन को मनाने के लिए जुलियन कोनिग ने अपने जन्मदिन की तारीख 22 अप्रैल को चुना। उनका मानना था कि 'अर्थ डे' के साथ 'बर्थ डे' ताल मिलाता है।
विश्व पृथ्वी दिवस 2020 की थीम:
हर साल इस दिवस को मनाने के लिए एक विशेष थीम भी होती है। पृथ्वी दिवस 2020 के लिए थीम 'जलवायु कार्रवाई' (Climate Action) है।
कोरोना का विश्व पृथ्वी दिवस 2020 पर प्रभाव:
इस वर्ष पूर्णबंधी के कारण खुलकर पृथ्वी दिवस नहीं मनाया गया लेकिन फिर भी इस वर्ष इसे मनाने का जो उद्देश्य होता है वह पूरा होता दिखा। इसका कारण यह है कि वातावरण इस मरतबा साफ़ व सुरक्षित रहा। वैश्विक पूर्णबंधी के चलते सभी वाहन तथा फैक्ट्रियां बंद हैं जिससे वायु प्रदूषण करने वाले सभी कारकों की संख्या में बहुत कमी आई है। ऊपर से पश्चिमी विक्षोभ के कारण लगभग वर्षा का क्रम भी जारी है। पहाड़ों में तो मौसम काफी खुशनुमा और सेहतमंद है।
स्टेट और ग्लोबल एयर 2019 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में साल 2017 में करीब 12 लाख लोगों की मृत्यु वायु प्रदुषण के कारण से हुई थी। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के आकड़ों के अनुसार भारत के 90 से अधिक शहरों में पिछले कुछ समय में वायु प्रदूषण न्यूनतम दर्ज़ किया गया है। इससे सामान्य दिनों में वायु गुणवत्ता सूचकांक 50 फीसद से भी कम हो गया है। देशव्यापी पूर्णबंधी के कारण वाहन, कारखाने तथा तमाम कार्बन उत्सर्जन करने वाले कारक बंद हैं। जिस कारण प्रदूषण में कमी आई है।
विश्व बैंक के अनुमान के अनुसार जलवायु परिवर्तन के कुप्रभावों के कारण सन् 2030 तक पूरी दुनियाँ में करीब 10 करोड़ लोग निर्धनता की स्थिति में पहुँच जायेंगे। WHO की एक रिपोर्ट के अनुसार सन् 2050 तक विश्व में करीब साढ़े पांच लाख वयस्कों की मृत्यु का कारण जलवायु परिवर्तन के कारण हुई खाद्य आपूर्ती होगी। सन् 2030 से 2050 के मध्य तेज़ गर्मी और लू के प्रभाव, बच्चों की मृत्यु दर, मलेरिया, डायरिया और डेंगू जैसी बीमारियों के बढ़ते प्रकोप और तटीय क्षेत्रों में आने वाली बाढ़ के कारण प्रति वर्ष ढाई लाख लोग मारे जाने का डर है। विश्व बैंक का यह आकलन है कि सन् 2050 तक जलवायु परिवर्तन हमारी GDP में 3 फीसदी की कमी ला देगा और हमारी आधी आबादी के जीवन स्तर को नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा। पिछले 2 दशकों में जलवायु परिवर्तन के कारण आई आपदाओं के कारण भारत की अर्थव्यवस्था को 79.5 अरब डॉलर का नुक्सान हुआ है।
एक राष्ट्रीय समाचार चैनल के अनुसार उत्तराखंड के हरिद्वार में IIT रुड़की के शोधार्थियों द्वारा गंगा के पानी का नमूना लिया गया। जिसमें गंगा के पानी का TDS 72 के आस पास दर्ज़ किया गया। यह सामान्यतः हमारे घरों में लगे RO के पानी के सामान पाया गया। इसके अतिरिक्त गंगा के पानी का pH मान लगभग 8.4 से 8.5 के आस पास दर्ज़ किया गया जो कि मानकों के अनुरूप पाया गया।
उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने देवप्रयाग से हरिद्वार तक गंगा जल की जाँच के नमूनों में यह पाया की गंगा का पानी अब B श्रेणी से A श्रेणी में आ गया है। पर्यावरणविद् भी यही मानते है की पूर्णबंधी के चलते गंगा शुद्ध हुई है।
हमारे परिस्थितिकी तंत्र के लिए उपयोगी गिद्धों की संख्या लगातार कम होना पर्यावरणविदों के लिए चिंता का एक विषय बना हुआ है। परंतु पूर्णबंधी के दौरान उत्तराखंड के कोटद्वार में गिद्ध बड़ी संख्या में नज़र आये हैं। लोग इन्हें देखकर आश्चर्यचकित हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार यहाँ कई वर्षों के बाद गिद्ध देखने को मिल रहे हैं। पक्षी विशेषज्ञ बताते हैं की कभी उत्तराखंड में गिद्धों की 10 प्रजातियां पाई जाती थी। लेकिन अब केवल 5 प्रजातियों के गिद्ध ही प्रायः देखने को मिलते हैं। इनमें भी 'हिमालयन ग्रिफन' मुख्यतः है। लैंसीडॉन वन प्रभाग के DFO के अनुसार पूर्णबंधी के दौरान लोगों का घरों से निकलना कम हुआ तथा जल स्रोतों के पास उनका आवागमन कम होने से एक खास बेल्ट में गिद्ध अधिक तादात में दिखाई देने लगे हैं। खैर जो भी हो, लेकिन यह कहा जा सकता है की इस वैश्विक महामारी ने जहाँ मनुष्य को प्रकृति से हस्तेक्षेप का दंड दिया है वहीँ दूसरी तरफ प्रकृति स्वयं को रिस्टोर करने में लगी हुई है। लेकिन देखा जाये तो इन सबमें भी केवल मानव का सबसे ज्यादा फायदा होने वाला है। बहुत वर्षों पहले प्रकृतिवादी दार्शनिक रूसों ने कहा था- "प्रकृति की ओर लौटो"। आज यह प्रासंगिक प्रतीत होता है।
आगे की राहें:
कहते हैं भूत को सबब मानते हुए वर्तमान में ऐसे कर्म करने चाहिए जो आपके भविष्य को अच्छे से प्रभावित करें। इस पृथ्वी दिवस पर हम सभी को ये आत्म चिंतन करने की गहन आवश्यकता है की आखिर क्यों हम इस वर्ष अपने घरों में कैद रहकर पृथ्वी दिवस मनाने को मजबूर हुए हैं। हमें अपने अंदर की कमियों पर आत्ममंथन करने की जरुरत है। आज तक जो भी हमने प्रकृति के साथ किया वो सब कुछ हमें प्रकृति ने लौटाकर वापिस किया। फिर चाहे हो अच्छी चीज़े रही हो या बुरी, लेकिन उनका ब्याज अवश्य हमें प्रकृति ने वापिस लौटाया है।
आज आवश्यकता इस बात की है की हमारी सरकारें तथा विपक्षी दल एक-दूजे पर दोषारोपण करने की बज़ाय देश हित को सर्वोपरि स्थान दें। प्रदूषण जैसी गंभीर समस्या पर वास्तव में हमारी सरकारें तथा विश्व स्तर के संगठन सुधारात्मक नज़रिये से कुछ खास काम कर नहीं पाये हैं। आज हमें इस विषय पर अपना नजरिया बदलने की पहली आवश्यकता है। सबसे अच्छा तो यह है की हर व्यक्ति इस समस्या पर अपना ईमानदार नजरिया अपनाये। उचित नीतियों का निर्माण किया जाये लेकिन साथ ही उनका अच्छे से धरातल पर पालन भी किया जाये। पृथ्वी दिवस सिर्फ घोषणाओं तक या चर्चा का विषय बनकर न रह जाये। जो नीतियां अपनाई जाएं उनके सकारात्मक परिणाम आएं इस ओर भी प्रयत्न किये जाने की आवश्यकता है। भारत में नियम-कानूनों की कोई कमी नहीं है। परंतु समस्या इन पर ईमानदारी से अमल करने की है।
समीक्षा:
इस वर्ष केवल मनुष्य ही खुलकर विश्व पृथ्वी दिवस नहीं मना पाया, जबकि इस बार प्रकृति ने स्वयं पृथ्वी दिवस धूम-धाम से मनाया है। और इसके साक्षी रहे हैं वे सभी पक्षियाँ जिनके कलरव को सुने जैसे एक अरसा बीत चुका था। वह आकाश जो आज बिलकुल साफ़ दिखाई पड़ता है। वे सभी नदियां जिनका जल आज पीने योग्य और गंदगी से मुक्त हो चुका है। वे सभी पशु-पक्षी जो आज स्वतंत्र भयमुक्त होकर वनों में विचरण कर सकते हैं। वे पेड़-पौधे जिन्हें हमने अपने फायदे के लिए नष्ट करना प्रारम्भ कर लिया था और आज उनकी संख्या में वृद्धि हुई है। वह ओज़ोन परत जो आज पूरी मानव जाति पर ऊपर से देखकर हँस रही है, और मानो हमें चिढ़ाकर ये कहना चाहती है कि, हे मनुष्य.! कहाँ गयी अब तेरी विज्ञान और तकनिकी। जो तुम मेरा पालन-पोषण और संवर्धन इतने वर्षों में न कर पाये। वह आज मेरी जगत जननी प्रकृति ने मात्र कुछ महीनों में कर लिया है।
देखा जाये तो यह ही पृथ्वी दिवस को मनाने का तरीका होना चाहिए जो आज खुद प्रकृति ने हमें सिखाया है। अमूमन होता क्या रहा है, हर वर्ष मनुष्य शोर-शराबा ज्यादा करता है जबकि परिणाम आखिर 'ढाक के तीन पात' जैसे निकलते हैं। असल में मनुष्य को अब केवल अपनी चिंता छोड़कर धरती की भी चिंता करनी होगी। अगर सन् 1970 से पृथ्वी दिवस सही तौर पर मनाया जाता और हम सभी अपने कर्तव्यों और दायित्वों के प्रति ईमानदार रहते तो आज परिणाम हमारे प्रतिकूल नहीं अपितु अनुकूल रहते। लेकिन हमने ऐसा कुछ भी नहीं किया। फलस्वरूप जिन मासूमों को हमने उनके बिना किसी गुनाह पर कैद किया था, वे सभी आज स्वतंत्र हैं। जबकि विपरीत इसके आज हम सभी अपने ही घरों में कैद हैं। शायद यही अपने-अपने कर्मों का फ़लसफ़ा है। पृथ्वी पर अगर जैव-विविधता को बचाए रखना है तो, मनुष्य को अपनी आदतों में परिवर्तन करना ही होगा। हमारा सुधारवादी नजरिया हो सकता है कि निकट भविष्य में हमारी इस कमी की पूर्ति कर ले।
-प्रभात रावतⒸ 🌞
*(ये लेखक के अपने व्यक्तिगत एवं स्वतंत्र विचार हैं..!!)
**आंकड़े/स्त्रोत:- प्रिंट मिडिया, इलेक्ट्रॉनिक मिडिया, किताबें आदि द्वारा प्राप्त।
**आंकड़े/स्त्रोत:- प्रिंट मिडिया, इलेक्ट्रॉनिक मिडिया, किताबें आदि द्वारा प्राप्त।
4 Comments
Thoughtful editorial
ReplyDeleteAti vishishth!
ReplyDeletemahoday
Very nice thought
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लेख
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