प्रधानमंत्री मोदी जी ने विगत 12 मई को रात 8 बजे ₹20 लाख करोड़ का एक आर्थिक पैकेज देश के नाम समर्पित किया। जोकि भारत की GDP का तक़रीबन 10 प्रतिशत हिस्सा है। 20 लाख करोड़ के इस पैकेज के ऐलान के साथ ही भारत अब उन शीर्ष पांच देशों की सूचि में शामिल हो गया है, जिन्होंने कोरोना काल के बीच इतना बड़ा राहत का पैकेज दिया है। यह कोरोना के संकट काल के बीच अब तक का पांचवा सबसे बड़ा ऐलान है। भारत से आगे इस सूचि में जापान, अमेरिका, स्वीडन तथा जर्मनी ही हैं। भारत ने जिस पैकेज का ऐलान किया है वह UK से लगभग दो गुना और चीन से लगभग तीन गुना GDP का हिस्सा है।
गौरतलब है, COVID-19 के कारण इस वक्त विश्व के साथ-साथ भारत की अर्थव्यवस्था भी चरमरा गयी है। इसका असर वैश्विक स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक देखने को मिल रहा है। प्रधानमंत्री मोदी जी ने अपने 37 मि0 के सम्बोधन में कहा है कि हमें आत्मनिर्भर भारत का निर्माण करना है। ये 20 लाख करोड़ रूपये का जो आर्थिक पैकेज घोषित किया गया है यह आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में कल्याणकारी साबित होने वाला है। कहीं न कहीं ये जो आत्मनिर्भर भारत की बात मोदी जी ने कही है वो आने वाले समय में हमारे आर्थिक तथा कूटनीतिक मामलों में भी परिवर्तन लाने वाली है। इसका कारण यह है कि जहाँ आर्थिक मामलों में एक नई शुरुआत होगी, वहीं वैश्विक स्तर पर हमारे कूटनीतिक संबंधों का एक नया अध्याय प्रारम्भ होगा।
सन् 1991 ई0 के बाद भारत में जो आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत हुई थी, उसका भारत की अर्थव्यवस्था पर एक सकारात्मक प्रभाव लंबे समय तक पड़ा। तबसे लेकर आज तक के लंबे समयांतराल में यह पहला अवसर है जब भारत के किसी प्रधानमंत्री ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए स्थानीय स्तर पर निर्माण कार्य को बढ़ावा देने की बात कही है। यहाँ स्थानीय स्तर पर निर्माण से तात्पर्य है, स्थानीय स्तर पर हमारे स्थानीय लोगों से कार्य करवाया जायेगा। इसमें हमारी कंपनियां होंगी, हमारा श्रम होगा, पैसा हमारा होगा तथा नफा-नुक्सान की भागीदारी भी हमारी अपनी होगी। कुल मिलाकर कहा जाये तो प्रधानमंत्री जी ने अप्रत्यक्ष रूप से स्वदेशी निर्मित वस्तुओं के उपयोग पर भी बल देने को नागरिकों को कहा है। जिससे देश का धन देश में ही रहेगा तथा देश के निर्माण कार्यों में इसकी अधिक भूमिका होगी। इससे न केवल देश का धन किसी गलत मद मसलन आतंकवाद जैसे कृत्यों में खर्च नहीं होगा बल्कि इस धन का सही क्षेत्रों में उपयोग होने से देश की GDP को भी गति मिलेगी। इसलिए प्रधानमंत्री जी ने "आत्मनिर्भर भारत" का नारा देशवासियों के बीच दिया है।
अब समझने वाली बात यह है कि आत्मनिर्भर होना क्या मात्र किसी दूसरे देश के साथ व्यापारिक संबंधों को ख़राब करने से है.?? या फिर आयात और निर्यात पर पूर्णतः अंकुश लगाना आत्मनिर्भर होना है..?? शायद नहीं। क्योंकि ऐसा होता तो वस्तु विनिमय जो शताब्दियों से चली आ रही प्रथा है उसका फिर कोई औचित्य रहता ही नहीं। अब अगर कोई यह सोच रहा है, किसी दिन प्रधानमंत्री जी लाल किले की प्राचीर से अपने सम्बोधन में जब यह कह लें कि आज से चीन से कोई भी व्यापार नहीं होगा और तब मैं आत्मनिर्भर बनने की कोशिस करूँगा तो ये मुझे मात्र हास्यप्रद प्रतीत होता है। मित्रो, अपने पास उपलब्ध सीमित संसाधनों में अपनी दिनचर्या चलाना भी आत्मनिर्भर होना है, बाहर से आयात होने वाली सभी वस्तुओं का अपने देश में उत्पादन बढ़ाना भी आत्मनिर्भर होना है, निर्यात की जाने वाली सभी वस्तुओं का और अधिक मात्रा में उत्पादन करना भी आत्मनिर्भर होना है। लेकिन आत्मनिर्भर होने का मतलब वस्तु विनिमय या व्यापार को समाप्त कर देना नहीं है। यही कारण है की आज केंद्र सरकार मजदूरों और कृषकों को मुफ़्त का खाना नहीं बाँट रही बल्कि उन्हें धन दिया जा रहा है, ताकि वे उत्पादन कर सकें। खुद भी कमाकर खाएं तथा अपने साथ औरों को भी रोजगार दे। यही सही मायने में आत्मनिर्भर होना है।
आत्मनिर्भर से तात्पर्य:
यहाँ आत्मनिर्भर शब्द का शाब्दिक अर्थ समझना बहुत जरुरी हो जाता है की आखिर किसे हम आत्मनिर्भर की संज्ञा देंगे। मेरे कई साथियों से मेरी इस मसले पर बात हुई। कुछ के हिसाब से तो मात्र चीन से व्यापारिक सम्बन्ध बंद कर देना ही आत्मनिर्भर होना है। कुछ के अनुसार, आवश्यकता के सभी सामानों का देश में उत्पादन करते हुए विदेशी आयत को पूर्णतया समाप्त कर देना ही आत्मनिर्भरता है। कुछ वामपंथी साथी तो यहाँ तक कह गए, होना कुछ नहीं है सरकारें बस जुमलेबाज़ी करती है। हिम्मत है तो चीन से व्यापार बंद करके बता दे। अब इन नरमुंडों को ये कौन समझाये कि हमारा पड़ोसी शत्रु देश, जो आज हमारी किसी गिनती में शामिल नहीं। जब हम उससे अपना व्यापार पूर्णतः बंद नहीं कर सकते तो चीन फिर भी आज हमारी आवश्यकताओं का बाजार है। हमारे सुबह उठने पर घडी देखने तथा रात को सोते वक्त मोबाईल जो हम उपयोग करते हैं वो हमने चीन से ख़रीदा हुआ होता है। यहाँ तक की हमारे त्योहारों पर उपयोग होने वाली वस्तुओं तथा देवी-देवताओं की मूर्तियां तक चीन से बनकर आती हैं।अब समझने वाली बात यह है कि आत्मनिर्भर होना क्या मात्र किसी दूसरे देश के साथ व्यापारिक संबंधों को ख़राब करने से है.?? या फिर आयात और निर्यात पर पूर्णतः अंकुश लगाना आत्मनिर्भर होना है..?? शायद नहीं। क्योंकि ऐसा होता तो वस्तु विनिमय जो शताब्दियों से चली आ रही प्रथा है उसका फिर कोई औचित्य रहता ही नहीं। अब अगर कोई यह सोच रहा है, किसी दिन प्रधानमंत्री जी लाल किले की प्राचीर से अपने सम्बोधन में जब यह कह लें कि आज से चीन से कोई भी व्यापार नहीं होगा और तब मैं आत्मनिर्भर बनने की कोशिस करूँगा तो ये मुझे मात्र हास्यप्रद प्रतीत होता है। मित्रो, अपने पास उपलब्ध सीमित संसाधनों में अपनी दिनचर्या चलाना भी आत्मनिर्भर होना है, बाहर से आयात होने वाली सभी वस्तुओं का अपने देश में उत्पादन बढ़ाना भी आत्मनिर्भर होना है, निर्यात की जाने वाली सभी वस्तुओं का और अधिक मात्रा में उत्पादन करना भी आत्मनिर्भर होना है। लेकिन आत्मनिर्भर होने का मतलब वस्तु विनिमय या व्यापार को समाप्त कर देना नहीं है। यही कारण है की आज केंद्र सरकार मजदूरों और कृषकों को मुफ़्त का खाना नहीं बाँट रही बल्कि उन्हें धन दिया जा रहा है, ताकि वे उत्पादन कर सकें। खुद भी कमाकर खाएं तथा अपने साथ औरों को भी रोजगार दे। यही सही मायने में आत्मनिर्भर होना है।
वर्तमान में विश्व का चीन के प्रति दृष्टिकोण:
कोरोना महामारी के कारण हम सभी यह अच्छे से जानते हैं वर्तमान में चीन में विश्व भर के तमाम देशों ने जो निवेश किया था उसमें अब कमी आ रही है। इसका एक महत्वपूर्ण कारण यह है चीन अब संदेह के घेरे में आ चुका है। अब संसार चीन जैसे देश के साम्राज्यवादी रवैये को भली-भांति समझ रहा है। नैतिक तौर पर आज कोई भी देश चीन जैसे देश पर विश्वास करके अपने पांव पर स्वयं कुल्हाड़ी नहीं मारना चाहता है। यही कारण है कि हज़ारों कंपनियां चीन से अपना बोरिया-बिस्तर समेटकर अन्य देशों की तरफ अब झांक रही हैं। देखा जाये तो यह समय भारत के पास एक स्वर्णिम अवसर की भांति हैं। क्योंकि भारत विश्व का सबसे बड़ा बाजार है इसलिए विश्व की बड़ी कंपनियां अब भारत को चीन के विकल्प के तौर पर देख रही हैं। यह समय FDI को खींचकर भारत लाने का भी उपयुक्त समय है। अगर विदेशी प्रत्यक्ष निवेश बढेगा तो यह 21वीं शदी के भारत के लिए एक अहम् कदम साबित होगा। प्रधानमंत्री जी का अक्सर यह कथन "21वीं शदी भारत की शदी होगी" तथा "5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था" का सपना समूचे राष्ट्र में एक आशा की किरण प्रज्ज्वलित करता है। लेकिन इसके लिए हमें आत्मनिर्भर होकर अपने कर्तव्यों का पालन ईमानदारी के साथ करना होगा।
यद्दपि चीन जैसे देश से कोई भी देश अपने व्यापारिक सम्बन्ध नहीं रखना चाहेगा क्योंकि सभी जानते हैं चीन अपने व्यक्तिगत स्वार्थों के आगे किसी की परवाह नहीं करता है। लेकिन फिर भी हर देश की अपनी व्यक्तिगत मजबूरियां है जो चीन से उसे व्यापार स्थापित करने को विवश करती है। इसका कारण विश्व की अर्थव्यवस्था के एक बड़े भाग पर चीन जैसे देश का कब्ज़ा होना है। हम सभी अच्छे से जानते हैं चीन आज विश्व में सबसे बड़ा उत्पादन करने वाला देश है। साथ ही विश्व राजनीति में सुपर पॉवर बनने की ये जो आर्थिक होड़ लगी है, इसका रास्ता उच्च अर्थव्यवस्था से होकर जाता है। चीन संसार में अमेरिका के बाद दूसरे स्थान पर सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश है। इसकी अर्थव्यवस्था भारत की अर्थव्यवस्था से लगभग 5 गुनी अधिक है। इसलिए चीन से व्यापारिक सम्बन्ध रखना हम सभी की मज़बूरी है।
भारत-चीन व्यापार पर एक दृष्टि:
इस साल बीते जनवरी 2020 तक पिछले सालों के मुकाबले में भारत व चीन का व्यापार लगभग 3 अरब डॉलर कम रहा है। व्यापार में हुई इस गिरावट के बावजूद वर्ष 2019 में चीन के साथ भारत का व्यापारिक घाटा 55.77 अरब डॉलर का रहा है। चीन का भारत को निर्यात पिछले वर्ष 2.1% बढ़कर 515.63 अरब युआन रहा जबकि भारत का चीन को निर्यात 0.2% घटकर 123.89 अरब युआन रहा। कुल मिलाकर भारत का व्यापारिक घाटा 2019 में 391.74 अरब युआन रहा।
2019 में चीन के साथ भारत का व्यापारिक घाटा 56.77 अरब डॉलर रहा जो 2018 में 58.04 अरब डॉलर था तथा 2017 में 51.72 अरब डॉलर था। इसका सीधा सा मतलब ये निकलता है की चीन ने भारत को सामान ज्यादा बेचा जबकि भारत से कम सामान ख़रीदा। अमेरिका तथा चीन के मध्य ट्रेड वार के कारण अब स्थितियां बदल चुकी हैं। अब भारत चीन को लगभग कम से कम 57 ऐसे उत्पाद आसानी से बेच सकता है, जो कभी अमेरिका द्वारा चीन को बेचे जाते रहे थे। ये उत्पाद न केवल गुणवत्ता में अमेरिका से बेहत्तर होंगे बल्कि सस्ते भी होंगे।
चीन करीब 450 अरब डॉलर का इलेक्ट्रिक सामान, 97 अरब डॉलर के मेडिकल उपकरण तथा 125 अरब डॉलर के लोहे से जुडी वस्तुएं आयात करता है। अगर हम अपने देश में इन वस्तुओं का उत्पादन बढ़ा दे तथा इनने निर्यात पर जोर दे तो काफी हद तक हमारी अर्थव्यवस्था ऊपर उठ सकती है। अगर किसी देश का व्यापारिक घाटा लगातार कई वर्षों तक कायम रहता है, तो इसका उस देश की विकास दर, वहां के रोजगार तथा वहां की मुद्रा के मूल्य पर असर दिखता है। इसका कारण यह है की चालू खाते में एक बड़ा हिस्सा व्यापार संतुलन का होता है। अगर व्यापारिक घाटा बढ़ेगा तो चालू खातों का घाटा भी बढ़ जायेगा।
आगे की राहें:
अब भारत को आगे इस विषय पर सोचना होगा। हमें अपना व्यापार घाटा कम करने के लिए चीन पर लगातार दबाब बनाये रखने की आवश्यकता है। क्योंकि इस समय चीन के बाद भारत दुनियां के लिए एक उत्पादन केंद्र के विकल्प के रूप में मौजूद है।
उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथेः।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः।।
हमें आत्मनिर्भर बनकर विनिर्माण पर अपना ज्यादा ध्यान देना होगा। हमारे पास दिमाग, शक्ति तथा श्रम की कोई कमी नहीं है। कमी है तो बस उचित दिशानिर्देशन की तथा प्रबंधन की। हमें अगर 2025 तक 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था वाला राष्ट्र बनना है तो हमें अभी से अपनी निर्यात दर को लगभग 20% की दर पर ले जाना होगा जोकि वर्तमान में ऋणात्मक है। लक्ष्य आसान नहीं लेकिन असंभव भी नहीं है। किसी एक व्यक्ति विशेष के निर्णय करने से ये लक्ष्य हासिल नहीं हो सकता, लेकिन देश का हर नागरिक अगर ये गांठ बांध ले तो असंभव को संभव किया जा सकता है।
-प्रभात रावतⒸ 🌞
*(ये लेखक के अपने व्यक्तिगत एवं स्वतंत्र विचार हैं..!!)
**आंकड़े/स्त्रोत:- प्रिंट मिडिया, इलेक्ट्रॉनिक मिडिया, किताबें आदि द्वारा प्राप्त।
**आंकड़े/स्त्रोत:- प्रिंट मिडिया, इलेक्ट्रॉनिक मिडिया, किताबें आदि द्वारा प्राप्त।
5 Comments
उचित विचार
ReplyDeleteवाह, अद्भुत , विचारणीय, तथ्यात्मक, विश्लेषणात्मक एवं अनुकरणीय लेख।
ReplyDeleteऐसे अद्वितीय लेखन हेतु प्रभात जी को बहुत बहुत बधाइयां।
Bht Badiya sir g
ReplyDelete🙏🙏🙏 admirable analysis
ReplyDeleteतथ्यात्मक-विश्लेषणअनुकरणीय रावत जी
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