नाभिषेको न संस्कारः सिंहस्य क्रियते वने।
विक्रमार्जितसत्त्वस्य स्वयमेव मृगेंद्रता।।
अर्थात, सिंह को जंगल का राज़ा नियुक्त करने के लिए न तो कोई राज्याभिषेक किया जाता है और न ही उसका कोई संस्कार किया जाता है। अपने गुणों और पराक्रम से वह खुद ही जंगल में राज़ा के पद को प्राप्त करता है।
नेपोटिज़्म को हिंदी में "भाई-भतीजावाद" या "पक्षपात" कहा जाता है। इस व्यवस्था में योग्यता देखे बिना ही अपने सगे-सम्बन्धियों या जान-पहचान वालों को अपने पद या प्रभाव का फायदा गैर क़ानूनी तरीके से पहुँचाया जाता हैं।
नेपोटिज़्म वैसे तो न जाने कब से चला आ रहा है लेकिन हज़ारों साल पहले "राजा भरत" ने इसे समाप्त करने की कोशिश की थी। राजा भरत के 9 पुत्र थे परंतु 9 पुत्र होने के बावजूद भी भरत ने उनमें से किसी को भी अपना उत्तराधिकारी नहीं बनाया। राजा भरत ने यह माना कि राजा बनने के लिए योग्यता जरुरी है, न कि राजा का पुत्र होना। राजा भरत को अपने 9 पुत्रों में से किसी में भी राजा बनने की योग्यता नज़र नहीं आती थी इसलिए उन्होंने अपनी प्रजा में से किसी योग्य पुरुष को चुनकर राजा बनाया और इस प्रथा का अंत कर लिया। भरत ने "भूमन्यु" नाम के व्यक्ति को राजा बनाया था। परंतु कालांतर में उन्ही के वंश में जन्में धृतराष्ट्र ने राजा भरत का नाम डुबो दिया। धृतराष्ट्र ताउम्र अपने अयोग्य पुत्र दुर्योधन को राज़ा बनाना चाहता था और यहाँ से पुनः परिवारवाद की शुरुआत हो गयी।
विक्रमार्जितसत्त्वस्य स्वयमेव मृगेंद्रता।।
अर्थात, सिंह को जंगल का राज़ा नियुक्त करने के लिए न तो कोई राज्याभिषेक किया जाता है और न ही उसका कोई संस्कार किया जाता है। अपने गुणों और पराक्रम से वह खुद ही जंगल में राज़ा के पद को प्राप्त करता है।
नेपोटिज़्म को हिंदी में "भाई-भतीजावाद" या "पक्षपात" कहा जाता है। इस व्यवस्था में योग्यता देखे बिना ही अपने सगे-सम्बन्धियों या जान-पहचान वालों को अपने पद या प्रभाव का फायदा गैर क़ानूनी तरीके से पहुँचाया जाता हैं।
नेपोटिज़्म वैसे तो न जाने कब से चला आ रहा है लेकिन हज़ारों साल पहले "राजा भरत" ने इसे समाप्त करने की कोशिश की थी। राजा भरत के 9 पुत्र थे परंतु 9 पुत्र होने के बावजूद भी भरत ने उनमें से किसी को भी अपना उत्तराधिकारी नहीं बनाया। राजा भरत ने यह माना कि राजा बनने के लिए योग्यता जरुरी है, न कि राजा का पुत्र होना। राजा भरत को अपने 9 पुत्रों में से किसी में भी राजा बनने की योग्यता नज़र नहीं आती थी इसलिए उन्होंने अपनी प्रजा में से किसी योग्य पुरुष को चुनकर राजा बनाया और इस प्रथा का अंत कर लिया। भरत ने "भूमन्यु" नाम के व्यक्ति को राजा बनाया था। परंतु कालांतर में उन्ही के वंश में जन्में धृतराष्ट्र ने राजा भरत का नाम डुबो दिया। धृतराष्ट्र ताउम्र अपने अयोग्य पुत्र दुर्योधन को राज़ा बनाना चाहता था और यहाँ से पुनः परिवारवाद की शुरुआत हो गयी।
नेपोटिज़्म शब्द की उत्त्पत्ति कैथोलिक चर्च से हुई है। दरअसल 17वीं शताब्दी में कैथोलिक चर्च के पादरी (पोप या विशप) अपनी चर्च की अध्यक्षता का फायदा उठाते हुए अपने भाई के बच्चों को चर्च के मैनेजमेंट में ऊँचे पदों पर पहुँचा देते थे। बस यहीं से इस नेपोटिज़्म शब्द की शुरुआत मानी जाती है।
नेपोटिज़्म शब्द NEPOS से बना है। जो कि एक यूनानी भाषा का शब्द है। NEPOS का अर्थ होता है- NEPHEW अर्थात "भतीजा"। उस वक्त कैथोलिक चर्च के पादरी अपने बच्चों को चर्च के मैनेजमेंट में यह स्थान नहीं दिलवा सकते थे। इसके पीछे कारण यह था कि उस वक्त पादरियों को विवाह करने की इज़ाज़त नहीं होती थी। ऐसा माना जाता था कि विवाह करने के पश्च्यात वह व्यक्ति अपवित्र बन जाता है। इसलिए यदि किसी व्यक्ति को चर्च का पादरी बनना होता था तो उसे विवाह नहीं करना होता था और आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना होता था। कुल मिलकर वे अपने बच्चों को चर्च के मैनेजमेंट में ऊँचे पदों पर नहीं बैठा सकते थे। इसलिए उन्होंने यहाँ अपनी अध्यक्षता का फायदा उठाकर अपने भतीजों को बैठना शुरू किया, जिससे कि उनकी चर्च के प्रबंधन पर पकड़ मजबूत हो सके। यहीं से सबसे पहले भाई-भतीजावाद या नेपोटिज़्म शब्द का शुभारम्भ हुआ।
नेपोटिज़्म एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें योग्यता को नज़र अंदाज़ करके अयोग्य व्यक्ति या अपने परिजनों को उच्च पदों पर आसीन कर दिया जाता है। कालान्तर में यह धारणा राजनीति, मनोरंजन जगत, व्यवसाय तथा धर्म संबंधी क्षेत्रों में सबसे ज्यादा देखने को मिलती है। भारत में नेपोटिज़्म सभी जगह विद्यमान है। निजी क्षेत्रों में यह क़ानूनी होता है जबकि सरकारी क्षेत्रों में यह गैर क़ानूनी व्यवस्था मानी जाती है। निजी क्षेत्रों में नेपोटिज़्म इसलिए भी हावी होता है ताकि अपनों के माध्यम से एक विश्वास बना रहे। परिवारवाद, क्षेत्रवाद, राष्ट्रवाद, भाषावाद, जातिवाद ये सभी नेपोटोज़्म का ही हिस्सा हैं। नेपोटिज़्म अगर जड़ है तो ये सब इसकी साखाएं हैं।
वर्ण-व्यवस्था जो की पहले कार्यों के आधार पर निर्धारित की जाती थी, कालान्तर में परिवारवाद तक आकर सिमट गयी। ये भी एक नेपोटिज़्म का प्रभाव था। हालाँकि वर्तमान समय में वर्ण व्यवस्था अब उतनी कारगर नहीं रही और अब पुनः कार्यो के आधार पर व्यक्ति को तवज्जो दी जाने लगी है। लेकिन आरक्षण फिर एक ऐसी व्यवस्था है जहाँ पर नेपोटिज़्म प्रभावी होता नज़र आता है। खासकर तब जब आरक्षण का आधार आर्थिक न होकर जातिगत हो जाता है।
वर्ण-व्यवस्था जो की पहले कार्यों के आधार पर निर्धारित की जाती थी, कालान्तर में परिवारवाद तक आकर सिमट गयी। ये भी एक नेपोटिज़्म का प्रभाव था। हालाँकि वर्तमान समय में वर्ण व्यवस्था अब उतनी कारगर नहीं रही और अब पुनः कार्यो के आधार पर व्यक्ति को तवज्जो दी जाने लगी है। लेकिन आरक्षण फिर एक ऐसी व्यवस्था है जहाँ पर नेपोटिज़्म प्रभावी होता नज़र आता है। खासकर तब जब आरक्षण का आधार आर्थिक न होकर जातिगत हो जाता है।
नेपोटिज़्म दरअसल हमारे समाज में परिवार से ही शुरू हो जाता है। परिवार में ही उस बच्चे पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है, जो माता-पिता या बड़ों की उम्मीदों पर ज्यादा खरा उतरता है। मसलन पढाई, खेल-कूद, अच्छी आदतें तथा अन्य अतिरिक्त क्रिया-कलापों में जो बच्चा ज्यादा पारंगत होता है उसकी तरफ सभी का ज्यादा ध्यान होता है। इसके विपरीत जो बच्चा सामान्य या कम दर्जे का होता है उस पर परिवार में ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता है, उसकी तारीफें नहीं की जाती हैं। फिर चाहे भले ही अभी उसके सामने अपना हुनर दिखाने या अपनी काबिलियत साबित करने के लिए एक पूरा जीवन ही क्यों न पड़ा हो। ऐसे बच्चों की अक्सर उपेक्षा की जाती है। जिस कारण बचपन से ही उनके दिमाग में यह बात घर कर जाती है कि जीवन में कोई तो होना चाहिए जो आपका पक्ष मजबूती से रखे या अयोग्य होते हुए भी हमें वो स्थान दे सके जो एक योग्य प्रतिभावान व्यक्ति को दिया जाता है।
मनुष्यों से हटकर जानवरों में भी नेपोटिज़्म देखने को मिलता है। एक रिसर्च में यह माना गया है कि न केवल इंसानों में बल्कि जानवरों में भी नेपोटिज़्म पाया जाता है। उदाहरण के लिए, मधुमक्खियाँ अपने छत्ते में बाहर से आई किसी दूसरी मधुमक्खियों को नहीं घुसने देती हैं। वे यह सब रंग-रूप और गंध के आधार पर पता लगा लेती हैं कि कौन सी मधुमक्खी उनके परिवार की सदस्य है और कौन सी बाहर से आई है। ठीक यही बात कतिपय मामलों में पक्षियों में भी देखने को मिलती है। बाहर से आये हुए किसी भी पक्षी को ये पक्षी अक्सर दाना चुगने से रोकते हैं। इस कारण उनमें आपसी संघर्ष भी देखने को मिलता है। अतः यह कहा जा सकता है कि नेपोटिज़्म की व्यवस्था सिर्फ इंसानों में ही नहीं वरन् अन्य जीवधारियों में भी देखने को मिलती है। बस अंतर सिर्फ इतना होता है कि कुछ मामलों में नेपोटिज़्म का उपयोग व्यक्तिगत लाभ पहुँचाने के लिए होता है तो कुछ मामलों में इसका प्रयोग दूसरों को जानबूझकर हानि पहुँचाने के लिये किया जाता है।
प्राचीन काल के रजवाड़ों से लेकर मध्यकाल तक हम अगर इतिहास पर नज़र मारें तो हम यह बखूबी जान पाएंगे कि कैसे नेपोटिज़्म राजनीति में हावी होता है। राजा का बेटा ही उसका उत्तराधिकारी बनेगा चाहे वह उस पद के लायक हो या न हो... यही कारण है कि राजगद्दी की चाह में पुत्र पितृहंता तक बन गए।
भारतीय राजनीति में यह व्यवस्था आज भी विद्यमान है। हमारे देश के अधिकांश पुराने राजनैतिक दलों की आधारशिला नेपोटिज़्म पर टिकी है। क्षेत्रीय दलों में तो मानो एक होड़ सी लगी होती है जैसे पिता के बाद पुत्र ही दल की कमान संभालेगा, फिर चाहे वो कम लायक ही क्यों न हो.! असल में ये वो पार्टियां होती है जिनके खुद की पार्टी के भीतर लोकतंत्र जैसी कोई व्यवस्था नहीं होती है और ये बात करते हैं देश के लोकतंत्र की... वर्षों से इनकी पार्टी का अध्यक्ष तक नहीं बदलता, पार्टी की बागडोर एक परिवार से बाहर किसी अन्य हाथों में नहीं जाती। अगर गलती से किसी ने इनके खिलाफ आवाज़ बुलंद करने की या इनके फैसलों के खिलाफ जाने की जरुरत की तो उसे ये अपने दल से बाहर का रास्ता दिखा देते हैं। फलस्वरूप ये लोग मात्र अपने परिवार या रिश्तेदारों का विकास करते हैं। जनता के विकास से इन्हें कुछ लेना देना नहीं रहता।
सन् 2016 में आई फ़िल्म "सबरजीत" एक सच्ची घटना पर आधारित थी। यह फिल्म निर्देशक ओमंग कुमार के निर्देशन में बनी थी। इसमें मुख्य भूमिका में "रणदीप हुड्डा" और ऐश्वर्य राय बच्चन थे। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इस फ़िल्म में सबरजीत सिंह का किरदार निभाने के लिए रणदीप हुड्डा ने केवल 28दिनों में अपना 18किलो वजन घटाया था। स्थिति यह हो गयी थी कि रणदीप हुड्डा को कोई भी फ़िल्म के सेट पर पहचान नहीं पाया। जब निर्देशक ने आवाज़ लगाई तो रणदीप हुड्डा को देखकर सभी हैरान रह गए थे। दर्शकों ने इस फ़िल्म में रणदीप हुड्डा के अभिनय को बहुत पसंद किया और ₹15 करोड़ में बनी इस फ़िल्म ने लगभग ₹44करोड़ का कारोबार किया। परंतु बावजूद इसके इस फ़िल्म को किसी भी पुरस्कार के लिए नॉमिनेड नहीं किया गया और न ही रणदीप हुड्डा को इस फ़िल्म में अभिनय के लिए कोई पुरस्कार दिया गया। इसके विपरीत ऐसी फिल्मों को पुरस्कार दिया गया जिनका न तो कथानक किसी की समझ में आया और न ही इन फिल्मों से समाज में कोई प्रभावशाली सन्देश मिला। शायद इसलिए कि बॉलीवुड में पुरस्कार भी परिवार और प्रभाव को ध्यान में रखकर दिए जाते हैं।
बहुत दुःख होता है यह जानकर कि जब एक सामान्य परिवार से निकलकर आया कोई व्यक्ति अपने हुनर के दम पर जब इतनी कठिनाइयों को पार कर बुलंदियों को छूने लगता है और फिर एक दम वह इसी नेपोटिज़्म का शिकार होकर "सुशांत सिंह राजपूत" की तरह अचानक आत्महत्या कर देता है। ऐसा नहीं है कि ये भारतीय सिनेमा जगत की पहली ऐसी दुर्घटना थी। इससे पहले भी इस प्रकार की बहुत सी वारदातें हुई हैं लेकिन किसी का ध्यान इस ओर जाता नहीं है। हम एक दिन मोमबत्ती जला लेते हैं और एक महीना उन्हें याद कर रो लेते हैं... फिर भूल जाते हैं परंतु कुछ वक्त बाद एक और व्यक्ति नेपोटिज़्म का शिकार हो जाता है। इस प्रकार ये सिलसिला चलता रहता है और कहीं किसी कोने में फिर एक हुनर जिन्दा दफ़्न हो जाता है।
क्रिकेट का ही उदाहरण ले लीजिये अगर पिता एक अच्छा क्रिकेटर रहा हो तो उसके बेटे तो ज्यादा अवसर और पहली प्राथमिकता मिलती है। ये अलग बात है की अगर बेटे में बाप जितनी काबिलियत अगर 10% भी न हो तो उसका चयन होना असंभव है। लेकिन यहाँ प्रश्न उठता है उसका क्या जिसका बाप एक अच्छा क्रिकेटर नहीं या जिसकी ऊपर तक जान-पहचान नहीं। वो काबिलयत होने के बावजूद भी कठिन संघर्ष करता है। और कई तो अंततः नेपोटिज़्म का शिकार हो जाते हैं।
निजी क्षेत्र की कंपनियों में अपनों को सबसे पहले प्रमोट किया जाता है। यहाँ काबिलियत से ज्यादा विश्वास को मौका दिया जाता है। स्वतः है विश्वास अपनों पर ज्यादा किया जायेगा न कि परायों पर। सरकारी क्षेत्रों में ये गैर क़ानूनी है फिर भी जिसकी लाठी उसकी भैंस।
2- नेपोटिज़्म के प्रभाव से भ्रष्टाचार का जन्म होता है।
3- नेपोटिज़्म के कारण उचित नेतृत्वकर्ता में कमी आती है।
4- नेपोटिज़्म सिस्टम को कमजोर तथा अस्थाई बनाता है।
5- नेपोटिज़्म के कारण ही कर्मठ व्यक्तियों के उत्साह में कमी आती है।
6- नेपोटिज़्म समाज में समरसता की भावना को नष्ट करता है।
7- नेपोटिज़्म से व्यक्तिवाद और परिवारवाद को बढ़ावा मिलता है।
2- ये सोचकर कभी भी खामोश न रहें कि पक्षपात या भाई-भतीजावाद का शिकार अभी आप नहीं हो रहे, दूसरा हो रहा है। क्योंकि जो आज दूसरे के साथ हो रहा है, हो सकता है कल वही आपके साथ भी हो।
3- जब कभी आप नेपोटिज़्म का शिकार हो जाएँ तो चुप या अकेले न रहें। अपने दोस्तों या शुभचिंतकों से इस सन्दर्भ में बारे करे। उन्हें अपनी समस्या बताएं।
4- अपना काम निकालने के लिए न तो किसी पर पक्षपात करने के लिए जोर आजमाएं और न ही अपने खिलाफ पक्षपात होने दें।
ऐसी किसी भी घटना को अनदेखा करना और अपने स्वार्थ के चश्में से देखना खुद हम पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करेगा। आज कल तो सूचना प्रौद्योगिकी का दौर है। ऐसी कोई घटना अगर आपके या किसी अन्य व्यक्ति के साथ अगर घटती है तो सबूत के तौर पर उसकी रिकॉर्डिंग करें। उसकी क़ानूनी जांच करवाएं। एक अच्छे नागरिक और देशभक्त होने का फ़र्ज़ अदा करें। लेकिन हर बार की तरह इस बार भी हम एक बात अवश्य कहना चाहेंगे- पहले शुरुआत खुद से, फिर दूसरों से.!! नेपोटिज़्म जैसी व्यवस्था किसी की जान तक ले सकती है, किसी को पागल या दिवालिया बना सकती है। इसलिए इसे अनदेखा करके हम राष्ट्रहित में अपना योगदान नहीं दे सकते।
याद रखें हमारी ख़ामोशी किसी व्यक्ति की जान से बड़ी नहीं हो सकती। जब एक सूखा पत्ता और पानी की एक छोटी सी बूँद इंकलाब ला सकते हैं... तो फिर हम क्यों नहीं.!
नेपोटिज़्म का प्रभाव:
आइये अब देखते हैं विभिन्न क्षेत्रों में कैसे नेपोटिज़्म अपना प्रभाव दिखाता है-1- राजनीति के क्षेत्र में:
नेपोटिज़्म का सबसे ज्यादा प्रभाव प्रायः राजनीति के क्षेत्र में देखा जाता है। इसका मुख्य कारण यह है कि सत्ताधारी कोई भी व्यक्ति यह नहीं चाहता कि उसकी सत्ता किसी अन्य के हाथों में जाएं। लेकिन एक निश्चित समय के बाद उसे सत्ता से कार्यमुक्त होना पड़ता है। इसलिए वह चाहता है कि कोई ऐसा हो जो उसका विश्वासपात्र हो और उसकी सत्ता को अच्छे से संभालकर आगे बढ़ाये साथ ही साथ उसका कब्ज़ा भी सत्ता पर बना रहे। अतः वह यहाँ भाई-भतीजावाद फैलाकर अपनी सत्ता को अपने बेटों में, परिवारजनों में या अन्य सगे-सम्बन्धियों में जो कि उसके विश्वासपात्र हों उन्हें उसका उत्तराधिकारी बना देता है और फिर ये व्यवस्था प्रारम्भ से अंत तक चलती रहती है।प्राचीन काल के रजवाड़ों से लेकर मध्यकाल तक हम अगर इतिहास पर नज़र मारें तो हम यह बखूबी जान पाएंगे कि कैसे नेपोटिज़्म राजनीति में हावी होता है। राजा का बेटा ही उसका उत्तराधिकारी बनेगा चाहे वह उस पद के लायक हो या न हो... यही कारण है कि राजगद्दी की चाह में पुत्र पितृहंता तक बन गए।
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Nepotism |
2- मनोरंजन के क्षेत्र में:
मनोरंजन जगत की अगर बात की जाये तो सबसे पहले ध्यान में आता है सिनेमा। जी हाँ सिनेमा मनोरंजन का सबसे पुराना और महत्वपूर्ण साधन है। लेकिन अफ़सोस भारतीय सिनेमा भी नेपोटिज़्म से अछूता नहीं है। बॉलीबुड पर कुछ चुनिंदा परिवारों का राज़ दशको से चला आ रहा है। ये वे लोग हैं जो कलाकारों की प्रतिभा का सम्मान नहीं करते बल्कि उसकी हैसियत को तवज्जो देते हैं। अगर कोई व्यक्ति अभिनेता या अभिनेत्री है तो यह निश्चित है कि उनके बेटा-बेटी भी अभिनेता या अभिनेत्री ही बनेंगे। फिर चाहे उनके भीतर अभिनय का हुनर हो या न हो। यही कारण है कि बॉलीबुड में बहुत से सुपर स्टार ऐसे हैं जिनकी औलादें वो मुकाम हासिल न कर सकी जो उनके माता-पिता ने हासिल किया। अगर पिता डारेक्टर, भाई प्रॉड्यूसर और भाई संगीतज्ञ है तो यह भी निश्चित है उसका बेटा या बेटी उस फ़िल्म में अभिनेता या अभिनेत्री ही होंगे। यहाँ खुद के बच्चों को जानबूझकर आगे प्रमोट किया जाता है और किसी अन्य प्रतिभासम्पन्न कलाकार का कॅरियर नष्ट कर उसे रद्दी की टोकरी में फेंका जाता है। छोटे शहरों से आये कलाकारों को ये रसूकदार भाव तक नहीं देते। पूरी फ़िल्म लॉबी पर इनका नियंत्रण होता है। ये जब चाहे तो किसी को आसमान पर ले जाएँ और जब इनके मन की न हो तो उसे जमीन पर पटक दें। सिनेमा के साथ ही यह नेपोटिज़्म संगीत की दुनियां में भी देखने को मिलता है। अगर किसी प्रसिद्ध अभिनेता के लिए गाना गा लिया तो आप रातों-रात आसमाँ पर लेकिन अगर आप उनके मन के अनुरूप न पाये गए तो आपका कॅरियर ख़त्म। आपको उसके बाद कोई भी सख्श काम देने को तैयार नहीं मिलेगा।![]() |
Nepotism in Bollywood |
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फ़िल्म: सबरजीत |
3- खेल जगत में:
खेलों में जहाँ काबिलियत को अवसर मिलना चाहिए था इसके उलट भाई-भतीजावाद फैलाकर कम प्रतिभासम्पन्न को अवसर दिया जाता है। चाहे क्रिकेट, हॉकी, फ़ुटबाल हो या एथिलेटिक्स काम उसी का होता है जो चाटुकारिता करता है। अवसर उसे ज्यादा मिलते हैं जिसके सम्बन्ध ऊपरी स्तर तक होते हैं। सत्य ही कहा है अगर मामा कृष्ण हो तो फिर किस बात की चिंता।![]() |
Nepotism in sport |
4- कार्यस्थल या कार्यालयों में:
कार्यालयों में तो यह आज आम बात है। काम उसका पहला होगा जिसकी जान-पहचान होगी। जिसकी कोई जान-पहचान नहीं उसका काम या तो किया नहीं जाता या फिर आधे में लटका दिया जाता है। अगर हाथ मिलाते वक्त हाथों पर तेल नहीं लगाया तो फ़ाइल का आगे फिसल पाना नामुमकिन है। जी हुज़ूरी, दुआ-सलाम, चाटुकारिता, पूजा-पाठ और प्रसाद इनके बिना अगर आपका काम हो जाये तो समझिये आप या तो किसी अन्य ग्रह पर हैं या फिर गांधी जी के सपनों के भारत का उदय हो चुका है। मौखिक रूप से कोई सूचना सही से देने को कोई तैयार नहीं। लेकिन अगर सूचना का अधिकार अधिनियम का उपयोग कर सूचनाएं मांगी भी जाएँ तो उसमें भी सीधे-सीधे जानकारियां देने के बज़ाय घुमा-फिराकर बरगलाया जाता है। दुर्भाग्य देखिये नेताओ पर अफसरशाही हावी है और नेता जनता पर हावी हैं। लेकिन इन सब के बीच जिसका पपलू पहले से फिट है, तो समझो बॉस उसका मामला हिट है। आम जनमानस का कोई पूछने वाला नहीं। महिलाओं का कतिपय मामलों ने शोषण किया जाता है। गरीब को दुत्कारा जाता है और अपनों को दूध से नहाया जाता है। सामाजिक समरसता का मानो सरे आम मज़ाक बनाया हुआ है। लेकिन सावधान किसी ने आह भी भरी तो बदनाम कर दिए जाओगे। इन लोगों के विरुद्ध तो कहना मानो पाप है। जो हुक्का-पानी चल भी रहा होगा बंद कर दिया जायेगा। यही सोचकर एक सामाजिक और पढ़ा-लिखा व्यक्ति आँखे मूँद लेता है। फलस्वरूप नेपोटिज़्म आज पीढ़ी दर पीढ़ी विषाक्त बनकर फैल गया है।![]() |
Nepotism in work place |
निजी क्षेत्र की कंपनियों में अपनों को सबसे पहले प्रमोट किया जाता है। यहाँ काबिलियत से ज्यादा विश्वास को मौका दिया जाता है। स्वतः है विश्वास अपनों पर ज्यादा किया जायेगा न कि परायों पर। सरकारी क्षेत्रों में ये गैर क़ानूनी है फिर भी जिसकी लाठी उसकी भैंस।
नेपोटिज़्म से नुक्सान:
1- नेपोटिज़्म की वजह से योग्यता को उचित स्थान नहीं मिल पाता।2- नेपोटिज़्म के प्रभाव से भ्रष्टाचार का जन्म होता है।
3- नेपोटिज़्म के कारण उचित नेतृत्वकर्ता में कमी आती है।
4- नेपोटिज़्म सिस्टम को कमजोर तथा अस्थाई बनाता है।
5- नेपोटिज़्म के कारण ही कर्मठ व्यक्तियों के उत्साह में कमी आती है।
6- नेपोटिज़्म समाज में समरसता की भावना को नष्ट करता है।
7- नेपोटिज़्म से व्यक्तिवाद और परिवारवाद को बढ़ावा मिलता है।
नेपोटिज़्म से बचने के उपाय:
1- नेपोटिज़्म से बचने का सबसे पहला उपाय है- "आवाज़ उठाना।" जब कभी भी आप यह महसूस करें कि कहीं कुछ तो है जो नियम-कानूनों के मुताबिक नहीं हो रहा है या फिर सिस्टम में पक्षपात हो रहा है तो आगे बढ़ें और उसका विरोध करें। इसलिए कहते भी हैं- "समाज में दुर्जनों की दुष्टता से उतना नुक्सान नहीं होता है, जितना कि सज्जनों की ख़ामोशी से होता है।"2- ये सोचकर कभी भी खामोश न रहें कि पक्षपात या भाई-भतीजावाद का शिकार अभी आप नहीं हो रहे, दूसरा हो रहा है। क्योंकि जो आज दूसरे के साथ हो रहा है, हो सकता है कल वही आपके साथ भी हो।
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Stop Nepotism |
4- अपना काम निकालने के लिए न तो किसी पर पक्षपात करने के लिए जोर आजमाएं और न ही अपने खिलाफ पक्षपात होने दें।
आगे की राहें:
सबसे पहले तो जो लोग इस प्रकार से नेपोटिज़्म को आगे बढ़ाते हैं उन्हें हमें बेनकाब करना चाहिए। इस प्रकार के किसी भी व्यक्तियों का कोई भी समर्थन करना गलत का साथ देना जैसा है। राजनेता अगर नेपोटिज़्म को बढ़ावा देते हैं तो ऐसे नेताओं का विरोध करें। अगले चुनाव में उनका बहिस्कार कर्रें। उन्हें अपना अमूल्य मत न देकर समाज पर उपकार करें। जब ऐसे राजनेताओं की जमानत तक जफ्त हो जायेगी तो तब उन्हें अपने किये पर पछतावा होगा। फ़िल्मी कलाकार अगर नेपोटिज़्म को प्रमोट करें तो उन्हें अपना आदर्श कतई न बनायें। उनकी फिल्मों का बहिष्कार कर उन्हें सबक सिखायें। याद रखें ये हम जनता ही होती हैं तो इन्हें रातों-रात जमीं से आसमाँ तक पहुँचा देती है। अगर इन्हें हम बुलंदियों तक पहुँचा सकते हैं जिससे इनका घर चलता है, तो हम इन्हें जमीं पर पटक भी सकते हैं। कोई भी स्टार क्यों न हो अगर गलत को प्रमोट करता है तो उसे कोई हक़ नहीं शीर्ष पर बने रहने का। खेल में हो या कार्यस्थलों पर जो कोई भी नेपोटिज़्म को बढ़ावा दे उसे उसका दंड देना एक सामाजिक और जुझारू नागरिक होने के नातें हम सभी का परम कर्तव्य होना चाहिए।ऐसी किसी भी घटना को अनदेखा करना और अपने स्वार्थ के चश्में से देखना खुद हम पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करेगा। आज कल तो सूचना प्रौद्योगिकी का दौर है। ऐसी कोई घटना अगर आपके या किसी अन्य व्यक्ति के साथ अगर घटती है तो सबूत के तौर पर उसकी रिकॉर्डिंग करें। उसकी क़ानूनी जांच करवाएं। एक अच्छे नागरिक और देशभक्त होने का फ़र्ज़ अदा करें। लेकिन हर बार की तरह इस बार भी हम एक बात अवश्य कहना चाहेंगे- पहले शुरुआत खुद से, फिर दूसरों से.!! नेपोटिज़्म जैसी व्यवस्था किसी की जान तक ले सकती है, किसी को पागल या दिवालिया बना सकती है। इसलिए इसे अनदेखा करके हम राष्ट्रहित में अपना योगदान नहीं दे सकते।
याद रखें हमारी ख़ामोशी किसी व्यक्ति की जान से बड़ी नहीं हो सकती। जब एक सूखा पत्ता और पानी की एक छोटी सी बूँद इंकलाब ला सकते हैं... तो फिर हम क्यों नहीं.!
-प्रभात रावतⒸ 🌞
3 Comments
👏👏👏 ..your suggestions are just to the point .. everyone should think over it
ReplyDeleteseriously ,if we are imaging a balanced society.. nice article once again..🌈 🦋✌️
Serious interpretation of nepotism🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteनेपोटिज्म ने ही तो देश में अपना वर्चस्व अभी भी बना लिया है। इसमें जो बहुमुखी प्रतिभा के धनी होते हैं उनमें स्थान नहीं मिल पाता है यह
ReplyDeleteदुर्भाग्यपूर्ण है कि अपने देश में
..
ब्लॉग बेहतरीन लिखा है
काबिले तारीफ तारीफ
सोहन कठैत 🙏🙏👍👍