पहाड़ी वाले बाबा

     गांव से दूर एकांत में पहाड़ी पर एक बाबा रहा करते थे। पहाड़ी पर एक छोटी सी कुटिया। जिसमें कुछ टूटे हुए बर्तन, सोने के लिए बदहाल अवस्था में पड़ी हुई एक खटिया। कुछ दैनिक उपयोग की वस्तुएं और पूजन सामग्री। वैसे बाबा कोई चमत्कारिक शक्तियों वाले तो नहीं थे, फिर भी यदाकदा लोकहित में जड़ी-बूटी या भस्म दे दिया करते थे। गांव वाले बाबा जी को बहुत पसन्द किया करते थे। इसलिए जो भी उस रस्ते गुजरा करता, वह कुछ न कुछ बाबा जी के लिये भेंट स्वरूप ले जाया करता था। इसी बहाने बाबा जी तक दूध, घी, बीड़ी का बण्डल हो या फिर माचिस की डिबिया सब पहुँच जाया करती थी। किवदंतियों के अनुसार बाबा जी एक पढ़े-लिखे स्नातकोत्तर उपाधि धारक थे। लेकिन मोह-माया और सांसारिकता को त्याग कर असीम शांति की तलाश में काफी समय से इस स्थान पर रह रहे थे। यही कारण था, गांव का बूढ़ा व्यक्ति हो या नवयुवक सभी बाबा जी का बहुत सम्मान किया करते थे। बाबा जी गांव में सभी के आदर्श थे तथा सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे होने के साथ एक अच्छे मार्ग निर्देशक भी थे।


     गांव में वैसे तो परिवारों की संख्या 400 से ऊपर थी। लेकिन ज्यादातर लोग गांव से पलायन कर चुके थे। कोई अच्छी नौकरी की तलाश में तो कोई बच्चों की शिक्षा के उद्देश्य से। रहे बचे कुछ ज़मीन से जुड़े लोग ही बस गांव में रहा करते थे। इन लोगों से ही वास्तव में गांव का अस्तित्व बना हुआ था। ऐसा नहीं था कि गांव में प्राकृतिक संशाधनों की कोई कमी थी। लेकिन फिर भी भौतिक चकाचौंध की चमक एक सेतु बनकर गांव के जीवन को गांव से बाहर शहरों की तरफ धकेल रही थी। अब तो मात्र त्योहारों पर ही लेडिज़ और जेंटलमेनों का आगमन गांव में हुआ करता था।
     हमेशा की तरह सोमवार को अपने नित्य कामों से निजात पाकर बाबा जी गांव भ्रमण पर चल दिए। यकायक देखा की गांव इस बार पहले से काफी गुलज़ार नज़र आ रहा था। चारों तरफ शोर-शराबे का माहौल था। जो नीरवता गुजरे काफी समय से चली आ रही थी इस बार देखने को नहीं मिली। बाबा जी हैरान थे फिर भी "हरि ॐ" का जाप करते हुए चले जा रहे थे। गलियों में बच्चे समूह बनाकर खेल रहे थे। आगे बढ़कर देखा तो नुक्कड़ पर कुछ वयस्क गोल घेरे में बैठे ताश की बाज़ी खेल रहे थे। बाबा जी को पास से गुजरते देख सभी ने अभिवादन में जोर से प्रणाम किया। हरि ॐ कहकर बाबा जी उनके और पास चले गए।


बाबा जी- कैसे हो बेटा राहुल।
(बाबा जी ने एक नवयुवक से पूछा)

राहुल- अच्छा हूँ बाबा जी। और आप बताएं आप कैसे हैं.?

बाबा जी- बस प्रभु की कृपा है बेटे। कब आना हुआ.? इस बार काफी वर्षों में दर्शन हुए.? सब ख़ैरियत तो है.?

राहुल- सब ठीक है बाबा जी। बस जरा काम धंधे में व्यस्त था इसलिए गांव आने में इस बार वक्त लग गया ज्यादा।

बाबा जी- थोडा.! पूरे 6वर्षों में दर्शन दिए हैं तुमने इस बार। तुम्हारी माँ तो न जाने कितनी बार तुम्हें याद करके अक्सर रो जाया करती थी। और तुम्हारे बापूजी उन्हें तो बस इस बात से ही सांत्वना मिल जाया करती है कि बेटा जहाँ हैं, सपरिवार ख़ुशी से है। कभी फोन-फान भी कर लिया करो बेटा। वे तुम्हें बहुत याद करते हैं।

राहुल- जी बिलकुल बाबा जी। वैसे मैं अक्सर हफ्ते दस दिनों के भीतर फोन कर लिया करता हूँ।

बाबा जी- दस दिनों में! शाबास.! हर दिन कर लोगे तो क्या कोई नुक्सान हो जायेगा। चाहे 5मि0 बात कर लिया करो लेकिन हर रोज किया करो। तुम्हारी आवाज सुनकर तुम्हारे माँ-पिताजी भी खुश हो जाया करेंगे।
हामी भरकर राहुल ने अपनी आँखे शर्म से झुका दी।


तभी बाबा जी की नज़र पास खड़े सुनील पर पड़ी। क्यों बेटा सुनील कैसा चल रहा है तुम्हारा काम-धंधा.?
(बाबा जी ने कहा।)

सुनील- कहाँ बाबा जी। इस बार व्यापार कुछ खास नहीं रहा। इस कोरोना वायरस के कारण पूरा धंधा चौपट हो गया है। बाकी आप देख ही रहे हैं, एक सप्ताह से तो हम यहाँ घर पर ही पड़े हुए हैं। दुकानें सारी बंद की हुई हैं। जब ग्राहक ही नहीं आएंगे तो काम कैसे आगे बढ़ेगा।

बाबा जी- लेकिन बेटा तुम तो शहर के रहने वाले हो। वहां तो काफी सुख-सुविधाये होती है यह मैने सुना है। व्यापार वो वहां काफी फलता-फूलता है। तो फिर व्यापार करने में कोई परेशानी कैसे हो सकती है.?

सुनील- अब क्या बताऊँ बाबा जी। इस कोरोना बीमारी के कारण अब सब कुछ ठप पड़ गया है।

बाबा जी- पर मैने सुना है शहरों में बड़े-बड़े अस्पताल और जाने-माने डॉक्टर रहते हैं। उनके पास इस बीमारी का इलाज़ नहीं है क्या.?

सुनील- अगर होता तो यहाँ गांव में काम छोड़कर बैठा क्यों रहता।

बाबा जी- फिर तो बेटा तुमने गांव छोड़कर गलती कर ली। यहाँ देखो, मिश्रा जी का बड़ा लड़का। सुना है बड़ी डिग्री लेकर आया है। लेकिन फिर भी काम-धंधे के लिए अपना गांव चुना उसने। यहाँ वो मशरूम उत्पादन का कार्य करता है।

सुनील- फिर ऐसी डिग्री का क्या फायदा। जब गांव आकर खेती ही करनी है तो.!
(मुँह बनाकर बोला)



बाबा जी- तुम जानते हो वो अकेला काम नहीं करता। उसके साथ आज गांव के काफी लोग रोजगार से जुड़े हुए हैं। इतना ही नहीं आस पास के 10 से ज्यादा गांव वालों को भी रोजगार देता है। न कहीं दुकान खोलने का झंझट, न खेत में हल चलाने की फ़िक्र। और तो और जो मकान आज पलायन से खाली पड़े हुए थे, उनका जीर्णोद्धार करने उनके भीतर ये सब उगाता है। बंदर और किसी अन्य जंगली जानवरों का भी भय नहीं। इसके अलावा विभिन्न सब्जी और फलों के साथ ही आयुर्वेदिक औषिधियों का भी उत्पादन करता है। गांव वालों को घर में बैठे ही रोजगार मुहैया करवा रहा है। मैने सुना है एक महीने का उसका टर्नओवर लगभग 3-4 लाख चले जाता है। वेसे बेटा तुम शहर में 1 महीने का कितना कमा लेते हो..?

सुनील- ज्यादा नहीं महीने का 20 से 25 हज़ार।
(कहकर सुनील ने अपनी आँखे झुका ली।)

बाबा जी हरी ॐ कहकर आगे चल दिए.....

कुछ दूरी पर दो 25-30 साल के दो नवयुवक कंधे से कन्धा मिलाकर बातों में मसगूल हुए चले आ रहे थे। बाबा जी को देखकर रुके और प्रणाम किया।

बाबा जी- अरे कहाँ इतनी ख़ुशी से चले जा रहे हो रोहित। और बेटा अमित क्या हाल चाल हैं.?

रोहित- बस बाबाजी आशीर्वाद आपका। आज कल कोरोना के कारण गांव आना पड़ा वरना दिल्ली थे कोचिंग कर रहे अच्छे से। घर पर दिन भर तो मन लगेगा नहीं इसलिए जरा सैर सपाटे पर जा रहे हैं।

बाबा जी- लेकिन बेटा जी न तो तुम दोनों ने मास्क लगाया हुआ है और न ही सोशल डिस्टेंसिंग का ख्याल रखा हुआ है। इससे तो संक्रमण ज्यादा फैलने की सम्भावना है। आपको पता तो होगा सरकार ने कोरोना से बचने के लिए क्या-क्या गाइडलाइन जारी की हुई हैं।

अमित- क्या फ़रक पढ़ता है बाबा जी। यहां कौन सा हमें कोई देख रहा है। दिन भर मास्क वैसे भी नहीं लगाया जा सकता है। न तो दिन भर घरों में जानवरों के जैसे बंद रहा जा सकता है। सरकार का काम था गाइडलाइन जारी करना सो कर ली। और वेसे भी यहाँ गांव में हर पल हर किसी को चेक तो नहीं कर सकती न सरकार।

बाबा जी- बहुत खुब बेटा राम! जब ये हाल हमारे पढ़े-लिखे नवयुवकों का है तो औरों से क्या उम्मीद की जा सकती है। फ़रक पढता है बेटा... बहुत फ़रक पढता है। सबसे बड़ा फ़रक पड़ेगा तुम्हारे खुद के स्वास्थ्य पर। फिर पड़ेगा तुम्हारे परिवार के स्वास्थ्य पर और उसके बाद तुमसे जुड़े हुए हर उस व्यक्ति के जीवन पर जो तुम्हारी एक लापरवाही की सजा भुक्तेगा। रही बात सरकार की तो अगर तुम सरकारी नियमों की अनदेखी करोगे तो सरकार ज्यादा से ज्यादा तुम्हें दंड दे सकती है। लेकिन बेटा ये सब करके तुम खुद का जीवन भी दांव पर लगा रहे हो, ये बात भी अच्छे से समझ जाना। जो नियम बनाये गए हैं हम सभी की सहूलियत के लिए बनाये हुए हैं। इसमें सबकी भलाई छिपी हुई है समझो इस बात को। तुम्हें जब सरकार ने 14दिनों के लिए होम क्वरेंटाइन को कहा था तो तुम यूँ बाहर घूमकर अपना तो जीवन तबाह कर ही लोगे, साथ में अपने से जुड़े हुए लोगों के जीवन के साथ भी खेलोगे। वेसे दिल्ली में क्या करते हो..? मतलब किसकी कोचिंग ले रहे हो तुम दोनों.??
दोनों ने एक स्वर में कहा... जी सिविल सर्विसेज की।

पहले तो बाबा जी ठहाके मारकर हँसे, फिर बोले- बहुत खूब। अच्छा क्षेत्र चुना है समाज सेवा करने के लिए। ऐसे बनोगे अधिकारी। जो खुद नियम कानूनों को ताव पर रखकर बेलगाम घूम रहा है, वह क्या समाज को एक सूत्र में बांधकर सिस्टम को शुचारु रूप से चलायेगा।
(बाबा जी की बातों से दोनों मुँह लटकाकर चुप -चाप अपने घरों को चल दिए।)

     अभी कुछ दूरी ही नापी थी कि एक जन सैलाब आता हुआ दिखाई दिया। कुछ 40-50 लोगों की टोली और साथ में नारेबाजी करती हुई उन्मादी भीड़। भीड़ से जरा हटके कुछ सफेदपोश। पास जाकर पता लगा की नेता जी का काफिला निकल रहा है। शायद में शोर-शराबा भी कार्यकर्ताओं का था, जो अपने चेहते नेता जी के सम्मान में नारे लगा रहे थे। ये इस क्षेत्र के जाने माने नेता और सत्तासीन पार्टी के विधायक साहब थे। शायद कुछ काम रहा होगा इसलिए अपने पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ जा थे। बाबा जी को पास से गुजरते देखा तो विधायक साहब रुक गए।


नेता जी- प्रणाम बाबा जी.!

बाबा जी- खुश रहो नेता जी। और आज किधर तक दौड़ है.? बड़े जल्दी में दिखाई दे रहे हैं.?
(बाबा जी ने उत्सुकता से पूछा)

नेता जी- बाबा जी, बस पास के गांव में नहर का उद्घाटन है। उसी कार्य से जा रहा हूँ। अगर आपके पास वक्त हो तो आप भी हमारे साथ चल लीजिये।

बाबा जी- शुक्रिया नेता जी! लेकिन आप तो जानते हैं मैं अपने ही काम में ही व्यस्त रहने वाला एक आम सन्यासी हूँ। बाहर की भौतिक चकाचौंध से मेरा कोई वास्ता नहीं। मैं न तो आपके लिए इस क्षेत्र के जनाधार का प्रबंध कर सकता हूँ और न ही आपकी कोई वित्तीय सहायता कर सकता हूँ। इसलिए मेरा आपके साथ आने का कोई औचित्य नहीं।
(बाबा जी ने तंज कस्ते हुए कहा)

नेता जी- चलिए कोई नहीं बाबा जी.! आप तो बस मुझे अपना आशीर्वाद दें, मेरे लिए ये ही काफी है।

बाबा जी- वो सब तो ठीक है नेता जी लेकिन ये क्या.! न तो आप लोगों ने कोई मास्क लगा रखा है और न ही सोशल डिस्टेंसिंग रखी हुई है। ऐसे कैसे काम चलेगा.!

नेता जी- मास्क लगा तो रखा है। अब रैली में भला कैसी सोशल डिस्टेंसिंग.?? ये सब संभव नहीं आप भी जानते हैं। इतना तो चलता ही है। और वेसे भी सभी अपने आदमी हैं, अब किसको कहें और किसको न कहें... इसलिए छोड़िये कुछ नहीं होगा। छोटी सी तो बात है।

बाबा जी- पहली बात तो नेता जी मास्क कान में लटकाने के लिए नहीं बल्कि नाक-मुँह ढ़कने के लिए लगाना है। और दूसरी बात की जब तक इस महामारी का कोई पक्का इलाज़ या दवाई नहीं खोज ली जाती तब तक सोशल डिस्टेंसिंग ही इसका रामबाण उपाय है। अब तय आपको करना है कि आपके लिए जीवन बड़ी चीज़ है या रैली करना.!! सबसे अहम् तो यह है कि आप सरकार का एक हिस्सा हैं। हज़ारों लोग आपका अनुशरण करते हैं। अगर आप ही लापरवाही से कार्य करेंगे तो सामान्य जानता से भला अच्छे की क्या उम्मीद की जा सकती है.!! इसलिए आपसे निवेदन है, पहले सरकारी नियमो का आप पालन करें साथ ही औरों को भी करवाएं। हम सुरक्षित रहेगें तो समाज सुरक्षित रहेगा... और समाज सुरक्षित होने से देश तथा देश सुरक्षित होने से पूरी मानवता सुरक्षित रहेगी।

नेता जी- आप सही कहते हैं। मुझसे भूल हो गयी। हम आगे से यह सब का अच्छे से ध्यान रखेंगे और अपने प्रशंसकों से भी यह सब करने को कहेंगे। आपका धन्यवाद जो अपने हमारी आँखे खोली। आपका हाथ मेरे साथ रहे, जाने की अब अनुमति चाहूँगा।
(प्रणाम करते हुए)

     बाबा जी ने नेता जी के सिर पर हाथ रखा और प्रसाद स्वरूप झोले से कुछ फूल भी नेता जी के हाथ पर रख दिए। नेता जी का काफिला आगे बढ़ा। मुट्ठी खोलकर नेता जी ने देखा तो चौंक गए। अब सोच रहे हैं, कि बाबा जी से माँगा तो उनका हाथ था लेकिन उन्होंने मुझे फूल थमा दिया।  तभी तलक पीछे से असिस्टेंट की आवाज़ आई नेता जी आपने "आरोग्य सेतु" तो मोबाईल में डाउनलोड किया हुआ है न.!!  नेता जी चौंकते हुए बोले- कौन सा आरोग्य सेतु.??? असिस्टेंट समझ गया। स्थिति को नियंत्रण से बाहर जाता देख बोला- नहीं कुछ नहीं, मैं बस पूछ रहा था कि अगले महीने बगल के गांव में नदी पर बने सेतु का उद्घाटन है... उसी की प्लानिंग करनी है।

     इधर बाबा जी मंद गति से मुस्कुराते हुए "हरी ॐ" का जाप करते हुए अपने मार्ग पर चल दिए। शायद बाबा जी समझ चुके थे कि इस अंधेर नगरी के राज़ा ने भी चौपट ही होना है। जो नियम बनाते हैं, वे ही उनका अक्षरशः पालन नहीं करते। रही बची कसर मूर्ख आवाम पूरी कर देती है। जमुरियत बस इस बात की है, कि अपनी मनमर्ज़ी की जा सके। दूध की रखवाली के लिए हमने बिल्लियों को रखा हुआ है। ऊँचे पदों पर आसीन होने वालों की दास्ताँ "अँधा बांटे रेवड़ी, फिर-फिर अपनों को दे" वाली स्थिति को बयां करती हैं। बाबा जी ने सोचा, खैर अपने को क्या... सन्यासी हैं, झोला पकड़ कर कहीं भी निकल लेंगे। लेकिन इतना तो तय है कि इस हमाम में सब नंगे हैं।


-प्रभात रावतⒸ  🌞
*(ये लेखक के अपने व्यक्तिगत एवं स्वतंत्र विचार हैं..!!)


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