तमसो मा ज्योतिर्गमय

जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना...

अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाये.!


    ''गोपालदास नीरज'' जी की ये चंद पंक्तियाँ खुद में दीपावली की पूरी प्रासंगिकता को बयां करती है। अगर देखा जाये तो दीपावली पर्व पटाखे, बॉम्ब या फुलझड़ियों से कई ज्यादा अपने मन के अज्ञानता रूपी अंधकार को हटाकर उसे ज्ञान रूपी प्रकाश से प्रकाशित करने का त्यौहार है। न्यायपालिका या फिर सरकारें अगर पटाखों पर प्रतिबन्ध लगाये तो हमें इस बात पर बहस करने के स्थान पर यह सोचना चाहिए, कि दीपावली पर्व पर बारूद जलाना वेसे भी हमारी संस्कृति का हिस्सा नहीं रहा है। हमारी संस्कृति में सदियों से दीपावली पर दिए जलाने, माँ लक्ष्मी और भगवान् गणेश की पूजा करने, गौ माता की सेवा करने, घरों की साफ़-सफाई करने, गैरों को अपनाने और अपनों का सम्मान करने आदि की परम्परा रही है। लेकिन समय के साथ बदलते माहौल और भौतिक चकाचौंध ने हमारे इस प्रकाश पर्व को मनाने के तरीके को भी बदल कर रख दिया है।

    अब समय आ गया है' जब हमें अपने सनातनी संस्कृति को पुनः अपनाना होगा। इस त्यौहार को मनाने के तरीके को परिवर्तित करना होगा। क्यों न इस दीपावली पर हम कुछ खास करें... अपने आस-पास के वे लोग जो किसी कारणवश दीपावली मना पाने में असमर्थ हों उन्हें इस अवसर पर गले लगाएं, जरूरतमंदों की मदद करें, आपसी वैमनष्य की भावनाओं को दूर कर भाईचारे से रहने की कसमें खाएं।

    साथ ही प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण में भी अपना बहुमूल्य योगदान दें। पटाखों और बारूद से दूर रहें। ये सिर्फ हमारे वातावरण को प्रदूषित नहीं करते वरन हमारे धन का भी नुक्सान करते हैं। हर साल हम हज़ारों के पटाखे अनायास ही जला लेते हैं। कभी आपने सोचा... इससे आखिर हासिल क्या होता है.! हमने स्वयं पिछले 10 वर्षों से दीपावली पर 1 भी पटाखा नहीं जलाया लेकिन हर्षोल्लास में फिर भी कोई कमी न रही। जितने रुपयों में हम वायु प्रदुषण और ध्वनि प्रदुषण फैलाने के वाहक बनते हैं, उससे बहुत कम रूपयों में हम किसी जरूरतमंद को रोटी, कपड़ा या आश्रय दें तो निश्चित ही उसकी दुआ लगेगी और पर्यावरण को भी नुकसान कम होगा।

    कार्यालयों में कार्य करने वाले हर एक कर्मचारी अपने निचले कर्मचारियों को कुछ न कुछ उपहार अवश्य दें ताकि हमारा रिश्ता एक सीनियर और जूनियर से भी ऊपर उठकर इंसानियत के रिश्ते से महसूस किया जाये। अपनी व्यक्तिगत सोच को दूसरों पर न थोपें। अपने सहकर्मियों का सम्मान करें, बड़ों से अनुभव लें, छोटों को प्यार दें तथा अपनी जातिवादी, क्षेत्रवादी और लैंगिक पूर्वाग्रहों वाली कुंठित मानसिकता से ऊपर उठकर राष्ट्रवादी सोच के साथ सामाजिक समरसता को बनाये रखने में अपना सहयोग दें। याद रखें कुछ बड़ा करने के लिए सोच बड़ी होनी अत्यंत आवश्यक है। लेकिन यह भी कटु सत्य है कि परिवर्तन लाने वाले को इसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। अतः परिवर्तन को स्वीकार करने के लिए तैयार रहना भी नितांत आवश्यक है।

    आईये इस दीपावली हम सभी अपने इन्हीं दुर्गुणों की तिलांजलि दें तथा अंधकार से प्रकाश की तरफ चलायमान हों... सही मायनों में यही दीपावली मनाने की सार्थकता होगी.!!

एक बार पुनः सभी पाठकगणों को सपरिवार दीपावली की ढ़ेरों शुभकामनाएं। आप सभी पर प्रभु कृपा सदा बनी रहे।

                           🌞 शुभ दीपावली.! 🌱


-प्रभात रावतⒸ  🌞

*(ये लेखक के अपने व्यक्तिगत एवं स्वतंत्र विचार हैं..!!)


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1 Comments

  1. Bahut he achha likha h ....nice....& Aapko bhe Deepavali ki bahut bahut subhkamnaye..... Prabhat....

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